पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (Anapatya to aahlaada only) by Radha Gupta, Suman Agarwal, Vipin Kumar Anapatya - Antahpraak (Anamitra, Anaranya, Anala, Anasuuyaa, Anirudhdha, Anil, Anu, Anumati, Anuvinda, Anuhraada etc.) Anta - Aparnaa ((Antariksha, Antardhaana, Antarvedi, Andhaka, Andhakaara, Anna, Annapoornaa, Anvaahaaryapachana, Aparaajitaa, Aparnaa etc.) Apashakuna - Abhaya (Apashakuna, Apaana, apaamaarga, Apuupa, Apsaraa, Abhaya etc.) Abhayaa - Amaavaasyaa (Abhayaa, Abhichaara, Abhijit, Abhimanyu, Abhimaana, Abhisheka, Amara, Amarakantaka, Amaavasu, Amaavaasyaa etc.) Amita - Ambu (Amitaabha, Amitrajit, Amrita, Amritaa, Ambara, Ambareesha, Ambashtha, Ambaa, Ambaalikaa, Ambikaa, Ambu etc.) Ambha - Arishta ( Word like Ayana, Ayas/stone, Ayodhaya, Ayomukhi, Arajaa, Arani, Aranya/wild/jungle, Arishta etc.) Arishta - Arghya (Arishtanemi, Arishtaa, Aruna, Arunaachala, Arundhati, Arka, Argha, Arghya etc.) Arghya - Alakshmi (Archanaa, Arjuna, Artha, Ardhanaareeshwar, Arbuda, Aryamaa, Alakaa, Alakshmi etc.) Alakshmi - Avara (Alakshmi, Alamkara, Alambushaa, Alarka, Avataara/incarnation, Avantikaa, Avabhritha etc.) Avasphurja - Ashoucha (Avi, Avijnaata, Avidyaa, Avimukta, Aveekshita, Avyakta, Ashuunyashayana, Ashoka etc.) Ashoucha - Ashva (Ashma/stone, Ashmaka, Ashru/tears, Ashva/horse etc.) Ashvakraantaa - Ashvamedha (Ashwatara, Ashvattha/Pepal, Ashvatthaamaa, Ashvapati, Ashvamedha etc.) Ashvamedha - Ashvinau (Ashvamedha, Ashvashiraa, Ashvinau etc.) Ashvinau - Asi (Ashvinau, Ashtaka, Ashtakaa, Ashtami, Ashtaavakra, Asi/sword etc.) Asi - Astra (Asi/sword, Asikni, Asita, Asura/demon, Asuuyaa, Asta/sunset, Astra/weapon etc.) Astra - Ahoraatra (Astra/weapon, Aha/day, Ahamkara, Ahalyaa, Ahimsaa/nonviolence, Ahirbudhnya etc.) Aa - Aajyapa (Aakaasha/sky, Aakashaganga/milky way, Aakaashashayana, Aakuuti, Aagneedhra, Aangirasa, Aachaara, Aachamana, Aajya etc.) Aataruusha - Aaditya (Aadi, Aatma/Aatmaa/soul, Aatreya, Aaditya/sun etc.) Aaditya - Aapuurana (Aaditya, Aanakadundubhi, Aananda, Aanarta, Aantra/intestine, Aapastamba etc.) Aapah - Aayurveda (Aapah/water, Aama, Aamalaka, Aayu, Aayurveda, Aayudha/weapon etc.) Aayurveda - Aavarta (Aayurveda, Aaranyaka, Aarama, Aaruni, Aarogya, Aardra, Aaryaa, Aarsha, Aarshtishena, Aavarana/cover, Aavarta etc.) Aavasathya - Aahavaneeya (Aavasathya, Aavaha, Aashaa, Aashcharya/wonder, Aashvin, Aashadha, Aasana, Aasteeka, Aahavaneeya etc.) Aahavaneeya - Aahlaada (Aahavaneeya, Aahuka, Aahuti, Aahlaada etc. )
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अन्त नारद १.४२.२९( पृथिवी के अन्त में समुद्र, समुद्र के अन्त में तम आदि अन्तों का कथन - पृथिव्यंते समुद्रास्तु समुद्रांते तमः स्मृतम् ।। तमसोंऽते जलं प्राहुर्जलस्यांतेऽग्निरेव च ।। ) anta
अन्तक स्कन्द ४.२.६८.६९( अन्तकेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य - अंतकेश्वर संज्ञं च लिंगं तद्रुद्रदिक्स्थितम् । अतिपापोपि निष्पापो जायते तद्विलोकनात् ।। ), ४.२.९७.१३२ (अंतकेश्वरमालोक्य तद्याम्यां नांतकस्य भीः ।।) antaka
अन्तरात्मा गर्ग १.१६.२६( अन्तरात्मा की शक्ति लक्षण रूप वृत्ति का उल्लेख
अन्तरिक्ष गरुड ३.२२.८२(अन्तरिक्ष में त्रिविक्रम की स्थिति का उल्लेख - त्रिविक्रमो हरिरूप्यन्तरिक्षे सर्वजातावनन्तरूपी हरिश्च । हरेर्न वर्णोस्ति न गोत्रमस्ति न जातिरीशे सर्वरूपे विचित्रे ॥), देवीभागवत १.३.२९( १३वें द्वापर में व्यास ), ब्रह्माण्ड १.२.३५.१२०( १३वें द्वापर में व्यास ), १.२.३६.६९( आद्य नामक देवगण के अन्तर्गत एक देव नाम, आद्या – पुत्र - अंतरिक्षो वसुर्हव्यो ह्यतिथिश्च प्रियव्रतः ।। श्रोता मंतानुमंता च त्वाद्या ह्येते प्रकीर्त्तिताः ।। ), भागवत ९.१२.१२( इक्ष्वाकु वंश में पुष्कर - पुत्र, सुतपा – पिता - भविता मरुदेवोऽथ सुनक्षत्रोऽथ पुष्करः । तस्यान्तरिक्षः तत्पुत्रः सुतपास्तद् अमित्रजित् ॥ ), १०.५९.१२( मुर असुर - पुत्र, कृष्ण द्वारा मुर के वध पर कृष्ण से युद्ध व नष्ट होना - ताम्रोऽन्तरिक्षः श्रवणो विभावसुः वसुर्नभस्वानरुणश्च सप्तमः । ), ११.३.३( ऋषभ - पुत्र, निमि को माया से पार होने का उपदेश ), मत्स्य २७१.९( इक्ष्वाकु वंश में किन्नराश्व - पुत्र, सुषेण - पिता ), ३५.४( ययाति का स्वर्ग से पतित होकर अन्तरिक्ष में स्थित होना व अष्टक आदि से वार्तालाप-विवशः प्रच्युतः स्वर्गादप्राप्तो मेदिनी तलम्। स्थितश्चासीदन्तरीक्षे स तदेति श्रुतं मया।। ), २६८.१२( वास्तुमण्डल में एक देवता जिसके लिए शष्कुली/पूडी की बलि का विधान है ), वायु १०१.२९/२.३९.२९( अन्तरिक्ष में स्थिति रखने वाले गणों के नाम - मरुतो मातरिश्वानो रुद्रा देवास्तथाश्विनौ। अनिकेतान्तरिक्षास्ते भुवर्लौक्या दिवौकसः ।। ), शिव २.५.८.९( शिव रथ में पुष्कर का अन्तरिक्ष बनना - ऋतवो नेमयः षट् च तयोर्वै विप्रपुंगव ।। पुष्करं चांतरिक्षं वै रथनीडश्च मंदरः ।। ), ५.३९.३७( पुष्कर - पुत्र, सुतपा - पिता - मरुदेवस्सुतस्तस्य सुनक्षत्रो भविष्यति ।। तत्सुतः पुष्करस्तस्यांतरिक्षस्तत्सुतो द्विजाः ।।), द्र. आकाश, व्योम antariksha
अन्तर्द्धान अग्नि १८.१९( शिखण्डिनी व अन्तर्धान से हविर्द्धान के जन्म का उल्लेख ), नारद २.६५.६३(वृद्ध केदार में अन्तर्द्धान प्राप्ति का कथन), भविष्य ३.३.३०.८७( पद्मिनी द्वारा पद्माकर व कामपाल को अन्तर्द्धान पत्र देने का कथन ), भागवत ३.२०.४४( ब्रह्मा के शरीर का नाम ), ४.२४.३( पृथु - पुत्र, द्रविण उपनाम, शिखण्डिनी व नभस्वती - पति, चरित्र की महिमा ), मत्स्य ४.४४( पृथु - पुत्र, शिखण्डिनी - पति, मारीच - पिता ), द्र. वंश पृथु antardhaana अन्तर्वेदी गरुड २.६.२४(अन्तर्वेदी तृण का उल्लेख - धर्मस्त्वं वृषरूपेण जगदानन्ददायकः ॥ ….गङ्गायमुनयोः पेयमन्तर्वेदि तृणं चर ॥), नारद १.५६.७४०( कूर्म के अङ्गों में देश विन्यास के संदर्भ में पाञ्चाल के अन्तर्वेदी/नाभि होने का उल्लेख ), भविष्य २.१.९.२( अन्तर्वेदी व बहिर्वेदी में अन्तर का कथन , ज्ञानसाध्य कर्म की अन्तर्वेदी संज्ञा का उल्लेख - ज्ञानसाध्यं तु यत्कर्म अंतर्वेदीति कथ्यते ।। देवतास्थापनं पूजा बहिवेंदिरुदाहृता ।।), ३.३.२.१२( अन्तर्वेदी का उल्लेख मात्र? ), विष्णुधर्मोत्तर ३.२२१.२( अन्तर्वेदी व बहिर्वेदी में करणीय पूजा आदि कृत्य - अन्तर्वेद्यां च यजनं बहुवित्तस्य कीर्तितम्।। स्वल्पवित्तस्य धर्मज्ञ बहिर्वेदि प्रकीर्तितम् ।। ), स्कन्द १.१.१७.२७४( वृत्र के शरीर के अन्तर्वेदी रूपी गङ्गा - यमुना के मध्य क्षेत्र में पतन का उल्लेख - तत्रैव ब्रह्महत्या च पापिष्ठा पतिता भुवि॥ गंगायमुनयोर्मध्ये अंतर्वेदीति कथ्यते॥), २.२.४.१५( अन्तर्वेदी का माहात्म्य, पुरुषोत्तम क्षेत्र में सिन्धुराज के जल से वट मूल तक अन्तर्वेदी होने का उल्लेख - अन्तर्वेदी त्वियं पुण्या वांछ्यते त्रिदशैरपि ।। यत्र स्थितां हि पश्यंति सर्वांश्चक्राब्जधारिणः ।। ), २.२.४.३९( अन्तर्वेदी के रक्षार्थ ८ देवियों का कथन - अन्तर्वेदी रक्ष मम परितस्त्वं स्वमूर्तिभिः ।। सा तु तिष्ठति मत्प्रीत्या अष्टधा दिक्षु संस्थिता ।। ), २.२.१२.१०४( पुरुषोत्तम क्षेत्र में विष्णु के हृदय सदृश अन्तर्वेदी होने का उल्लेख - अंतर्वेदी महापुण्या विष्णोर्हृदयसंनिभा ।। तस्याः संरक्षणायाहं स्थापितो विष्णुनाष्टधा ।।),लक्ष्मीनारायण १.५८२.७२(पुरुषोत्तम क्षेत्र में शंख की नाभि में वट आदि की स्थिति, वट और अब्धि के बीच के क्षेत्र की अन्तर्वेदी संज्ञा आदि - वटाब्धिमध्यमं क्षेत्रं कीटादेरपि मुक्तिदम् । अन्तर्वेदी भागवतः क्षेत्रं मध्यगतं हि सा ।।), कथासरित् ६.६.४२ (अन्तर्वेदी में उत्पन्न वसुदत्त द्विज के विद्याकामी पुत्र विष्णुदत्त का वृत्तान्त - अन्तर्वेद्यामभूत्पूर्वं वसुदत्त इति द्विजः । विष्णुदत्ताभिधानश्च पुत्रस्तस्योदपद्यत ।।), antarvedee/ antarvedi अन्तस्थ अग्नि ३१८.१कल्याणअंक(अन्तःस्थ मन्त्र के रूप में र् ह् क्ष् मों का निरूपण), भागवत ३.११.४७( ऊष्माणमिन्द्रियाण्याहु: अन्तस्था बलमात्मन: )
अन्तःकरण स्कन्द ३.१.४९.३८(अन्तःकरण की आत्मा रूप में कल्पना) Antahkarana
अन्त्यज गरुड २.१२.६(७ अन्त्यज जातियों के नाम), भागवत ११.१७.२०( अन्त्यजों के स्वभाव अशौच, स्तेय, काम, क्रोध आदि का कथन )
अन्त्येष्टि गरुड २.१.५(अन्त्येष्टि क्रिया विधि), द्र. मृत्यु अन्त्र वायु ६.१९( वराह अन्त्र का उद्गाता से साम्य ), द्र. आन्त्र antra
अन्ध स्कन्द ५.३.१.१५( श्रुति व स्मृति से हीन विप्रों की अन्ध संज्ञा ), ५.३.१५९.१७( मात्सर्य से जाति अन्ध व पुस्तक हरण से जन्मान्ध होने का उल्लेख ), द्र. मदान्ध andha
अन्धक१ कूर्म १.१६( कालाग्नि रुद्र द्वारा अन्धक के निषूदन की कथा, अन्धक द्वारा शिव की स्तुति ), देवीभागवत ७.१८.३३( महिषासुर - सेनानी, चण्डिका देवी के सिंह पर प्रहार, सिंह द्वारा अन्धक का वध ), पद्म १.४६.२( अन्धक की पार्वती को प्राप्त करने की आसक्ति, शिव पर प्रहार, शिव द्वारा गण बनाना ), १.८१( विष्णु के वरदान व अमृत भक्षण के कारण अन्धक की अमरता, असुरत्व हरण के लिए ब्रह्मा द्वारा विचिकित्सा माया का प्रेषण, अन्धकासुर द्वारा मोहित होकर पार्वती को प्राप्त करने का यत्न ), भविष्य ३.४.२२.४७( कलियुग में मूर्तिभञ्जक नवरङ्ग (औरंगजेब) राजा के रूप में जन्म ), मत्स्य १५६.११( आडि व बक दैत्यों का पिता, अन्धक वध के पश्चात् आडि द्वारा पार्वती रूप धारण करके शिव से छल करने की चेष्टा ), १७९( अन्धक का शिव से युद्ध, मातृकाओं की सृष्टि, मृत्यु, गणेशत्व प्राप्ति ), लिङ्ग १.९३( शिव का गण बनना ), वराह २७( अन्धक द्वारा देवों को त्रास, मातृकाओं द्वारा अन्धक का प्रतिकार ), ९०( अन्धक से देवों को त्रास प्राप्त होने पर त्रिदेवों से त्रिकला नामक कुमार की उत्पत्ति ), वामन ९.२६+ ( अन्धक के रथ की विशिष्टता, राज्याभिषेक के पश्चात् देवों से युद्ध व विजय प्राप्ति ), ४८.३( राजा वेन का जन्मान्तर में हिरण्याक्ष - पुत्र अन्धक व शिवगण भृङ्गिरिटि बनना ), ५९.१६( अन्धक द्वारा पार्वती को प्राप्त करने की चेष्टा ), ६३( हिरण्याक्ष - पुत्र, प्रह्लाद द्वारा अन्धक को पार्वती सम्बन्धी उपदेश ), ६६( प्रह्लाद का अन्धक को शिव महत्त्व विषयक उपदेश ), ६९.७८( अन्धक द्वारा शिव रूप धारण करना ), ७०( शिव शूल से अन्धक का भेदन, अन्धक द्वारा शिव की स्तुति, गणत्व प्राप्ति ), विष्णुधर्मोत्तर १.२२६( अन्धक द्वारा पार्वती हरण की चेष्टा, मातृकाओं की सृष्टि ), शिव २.५.४२+ ( अन्धक का पार्वती के स्वेद से जन्म, हिरण्याक्ष द्वारा अन्धक का पालन, शिव द्वारा शूल से वेधना ), ४.१३.२( अन्धक का देवों और शिव से युद्ध, अन्धकेश लिङ्ग की स्थापना ), स्कन्द ४.१.१६( अन्धक द्वारा शुक्राचार्य को देवों से युद्ध में मरे दैत्यों को जीवित करने की प्रेरणा ), ५.१.३६.२४( अन्धक का शिव से युद्ध, अदृश्य होने पर नरादित्य द्वारा उत्पन्न प्रकाश में दृष्टिगोचर होना ), ५.१.३८( चामुण्डा द्वारा रक्त पान करके अन्धक को कृश करना, अन्धक द्वारा शिव की स्तुति, गणत्व प्राप्ति ), ५.२.३९.२५( अक्रूरेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, भृङ्गिरिटि द्वारा क्रूर बुद्धि विनाश हेतु स्थापना ), ५.२.५१( ), ५.३.४५+ ( अन्धक द्वारा देवों को त्रास, विष्णु से बाहु युद्ध, शिव से युद्ध, शिव द्वारा शूल से भेदन, अन्धक द्वारा शिव की स्तुति और भृङ्गीश गण बनना ), ६.१४९+ ( हिरण्यकशिपु- पुत्र, देवों से युद्ध में केलीश्वरी देवी से पराजय, स्तुति, शिव से युद्ध, पराजय, भृङ्गिरिटि गण बनना ), ६.२२८+ ( शिव से युद्ध करके भृङ्गिरिटि गण बनना ), ६.२२८.२३( प्रह्लाद द्वारा राज्यपद को अस्वीकार करने पर दानवों द्वारा अन्धक का राज्याभिषेक ), हरिवंश २.८६+ ( कश्यप व दिति - पुत्र, स्वरूप, नारद द्वारा मन्दराचल पर सन्तान पुष्प प्राप्ति का प्रलोभन, मन्दराचल पर शिव से युद्ध में भस्म होना ), लक्ष्मीनारायण २.५८.६७( शंकर के अन्धक से युद्ध में धुन्धु द्वारा अन्धक की सहायता, इन्द्र के वज्र का अन्धक से टकराकर चूर्ण होना, देवों द्वारा प्रदत्त शक्तियों से निर्मित रथ द्वारा शंकर द्वारा अन्धक का वध ) कथासरित् १७.१.८०(गिरिजापति द्वारा गिरिजा के मानसपुत्र अन्धक के वध का उल्लेख), andhaka अन्धक२ ब्रह्माण्ड २.३.७१.११८( विलोमा - पुत्र, वृष्णि - प्रपौत्र, अभिजित् - पिता, चन्दनोदक दुन्दुभि उपनाम ), मत्स्य ४४.४८( सात्वत व कौसल्या के पुत्रों में से एक), विष्णु ४.१३.११४( वृद्ध यादव, द्वारका में अनावृष्टि प्रकोप होने पर कृष्ण से अक्रूर व अक्रूर के माता - पिता के दिव्य प्रभाव का वर्णन, अक्रूर को पुन: द्वारका में लाने का परामर्श ), ४.१४.१२( कुकुर आदि ४ अन्धक - पुत्रों के वंश का वर्णन ), स्कन्द ७.१.१०५.५१( २८वें कल्प का नाम, अन्य नाम माहेश्वर, इस कल्प में त्रिपुर वध का उल्लेख ), ७.१.२३७( ऋषियों के शाप से वृष्णि - अन्धक कुलों के मुसल युद्ध में नष्ट होने की कथा ), हरिवंश २.२३( कंस द्वारा वसुदेव की निन्दा किए जाने पर अन्धक द्वारा कंस की निन्दा, मथुरा नगरी व कंस के भावी विनाश के सूचक अपशकुनों का कथन ) andhaka
अन्धकार मत्स्य १२२.८१( अन्धकारक : क्रौञ्च द्वीप के एक पर्वत का नाम ), वराह ८८.१(क्रौञ्च द्वीप के पर्वतों में से एक, अपर नाम अच्छोदक), स्कन्द २.४.९.५५( दीप दान से रहित गृह में लक्ष्मी - सन्तान अन्धकार के निवास का कथन ), महाभारत शान्ति ३२१.४४( अन्धकार के दर्शन से पूर्व ही हिरण्मय नगों को देखने का निर्देश ) andhakaara
अन्न गरुड २.१०.५(विभिन्न योनियों के अन्न), २.२५.४०(औरस पुत्र के अतिरिक्त अन्य पुत्रों द्वारा श्राद्ध में अन्न दान का निषेध), ३.२.४४(मुरारि के अन्नाभिमानी होने का उल्लेख), ३.२९.५१(अन्न आदि अर्पण काल में वासुदेव के स्मरण का निर्देश), ३.२९.५७(परान्न भक्षण काल में पाण्डुरङ्ग के स्मरण का निर्देश), नारद १.११४.१६( श्रावण कृष्ण पञ्चमी को अन्न समृद्धि व्रत विधि ), पद्म १.३.१४५( १७ ग्राम्य व १४ ग्राम्यारण्यक ओषधियों की ब्रह्मा से सृष्टि ), १.१६.८७( ब्रह्मा के यज्ञ में दक्ष द्वारा अन्न देना व वरुण आदि द्वारा पकाना ), १.३६.९३( अन्न दान का माहात्म्य : राजा श्वेत द्वारा स्व शव भक्षण की कथा, कङ्कण दान से मुक्ति ), ६.२६( अन्न दान का माहात्म्य ), ७.२०( अन्न दान का माहात्म्य, हरिशर्मा ब्राह्मण का वैकुण्ठ में क्षुधाग्रस्त होना, अन्न दान से मुक्ति ), ब्रह्म १.१०९( अन्न दान का माहात्म्य ), ब्रह्माण्ड ३.४.८.४१( निषिद्ध अन्न ), भविष्य ४.१६९( अन्न दान का माहात्म्य, राजा श्वेत की क्षुधा शान्ति, धनेश्वर वैश्य की सर्प भय से मुक्ति ), ४.१९९ ( तिलाचल दान विधि ), मत्स्य १९.८( श्राद्धान्न के सर्पों, यक्षों, राक्षसों आदि में रूपों का कथन ), मार्कण्डेय १५.२०( अन्न हरण पर मार्जार योनि आदि की प्राप्ति ), वराह १३०( राजा का अन्न भक्षण करने पर प्रायश्चित्त विधान ), विष्णु ३.११.९५( भुक्त अन्न का अगस्ति व बडवानल अग्नियों द्वारा पाक ), विष्णुधर्मोत्तर ३.३१५( अन्न दान की प्रशंसा, भुक्त अन्न की विशिष्टता ), शिव १.१५.२८( दशाङ्ग अन्न का उल्लेख ), १.१५.३६( विभिन्न पात्रों को अन्न दान के समय बुद्धि के अपेक्षित स्वरूप का कथन ), १.१८.४६( शालि, गोधूम आदि के पौरुष तथा षाष्टिक धान्य के प्राकृत होने का उल्लेख ), २.१.१४.३७( तण्डुल आदि धान्यों से शिव पूजा के फल ), ५.११.२४( अन्न दान की महिमा का वर्णन ), ५.२२.३( अन्न के पाक से उत्पन्न १२ स्थितियों का वर्णन ; अन्न पाक व गर्भ पाक में समानता ), स्कन्द १.२.४.७९( अन्न दान का मध्यम श्रेणी के दानों में वर्गीकरण ), २.७.७.२५( अन्न दान का माहात्म्य, मैत्र पिशाच का दृष्टान्त ), ४.१.३५.२३१( भोजन विधि का कथन, अन्नग्रहण मन्त्र ), ४.१.४०.९( भक्ष्याभक्ष्य विचार ), ५.३.११.३०( ब्राह्मण अन्न अमृत, क्षत्रिय पय:, वैश्य अन्न तथा शूद्र रुधिर होने आदि का कथन ), ५.३.१५९.१६( विप्र को पर्युषित अन्न दान से क्लीबता प्राप्ति का उल्लेख ), ६.१४१( मिष्टान्न दायक लिङ्ग का माहात्म्य, वसुसेन का अन्न दानाभाव में स्वर्ग में भूख से पीडित होना, पुत्र सत्यसेन द्वारा किए गए दान से मुक्ति ), ७.१.१२९.१९(राजा, स्वर्णकार, शूद्र, चर्मकार आदि के अन्न के दोष, अक्षमाला- वसिष्ठ संदर्भ), महाभारत वन ३१३.८५( गौ के अन्न होने का उल्लेख : यक्ष - युधिष्ठिर संवाद ), शान्ति ३६.२१( अभक्ष्य अन्न का विचार ), २२१.१( भक्ष्य अन्न का विचार ), अनुशासन ६३.५( अन्न दान के विशेष माहात्म्य का कथन ), ६६.५५+ ( अन्न दान का माहात्म्य ), ११२.१०( अन्न दान का माहात्म्य ), १३५.१( भोज्य - अभोज्य अन्न विचार ), आश्वमेधिक ९२दाक्षिणात्य पृष्ठ ६३२८( अन्न दान का माहात्म्य ), दाक्षिणात्य पृष्ठ ६३५२( अन्न दान हेतु अयोग्य दाताओं का विचार ), लक्ष्मीनारायण २.११.४२( कृष्ण के अन्न प्राशन संस्कार का वर्णन ), २.२१३.९५( रसान्न, मधुपर्कान्न आदि अनेकों प्रकार के अन्नों के नाम ), २.१६०.६९( विभिन्न देवों के लिए देय अन्न के प्रकार ), २.२१३.९५( अन्न के स्थूल व सूक्ष्म प्रकार ), २.२३८( कृष्ण - कृत अन्नकूट उत्सव का वर्णन ), ३.७५.८८( अन्न दान से पितर लोक की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.११०.७६( अन्न दान की महिमा )द्र. धान्य, भोजन anna
अन्नकूट वराह १६४( गोवर्धन का उपनाम, परिक्रमा का विधान ), लक्ष्मीनारायण १.३४८.५( अन्नकूट या गोवर्धन की परिक्रमा का माहात्म्य ), २.२३८( कृष्ण - कृत अन्नकूटोत्सव का वर्णन ), ४.९३.६९( कृष्ण के स्वागत - सत्कार हेतु ब्रह्मा द्वारा अन्नकूट के आयोजन का वर्णन ) annakoota/ annakuuta
अन्नपूर्णा नारद १.८६.६५( लक्ष्मी - अवतार, अन्नपूर्णा मन्त्र विधान का कथन ), ब्रह्माण्ड ३.४.३६.२३( चिन्तामणि गृह की एक देवी ), लक्ष्मीनारायण १.५०९.११७( ब्रह्म के यज्ञ में रुद्र द्वारा क्षिप्त भिक्षा कपाल का अन्नपूर्णा देवी रूप में परिवर्तित होना ) annapoornaa/annapuurnaa /annapurna
अन्वाहार्यपचन गरुड १.२१३.६६( ब्रह्मा गार्हपत्य, त्रिलोचन दक्षिणाग्नि व विष्णु के आहवनीय अग्नि होने का उल्लेख - ब्रह्मा वै गार्हपत्याग्निर्दक्षिणाग्निस्त्रिलोचनः । विष्णुराहवनीयाग्निः कुमारः सत्य उच्यते ॥ ), १.२१३.१५३( उदर में गार्हपत्य, पृष्ठ देश में दक्षिणाग्नि आदि होने का उल्लेख - उदरे गार्हपत्याग्निः पृष्ठदेशे तु दक्षिणः ॥ आस्ये चाहवनीयोऽग्निः सत्यः पर्व च मूर्धनि । ), देवीभागवत ३.१२.४९( गार्हपत्य अग्नि प्राण, आहवनीय अपान तथा दक्षिणाग्नि व्यान आदि होने का उल्लेख - गार्हपत्यस्तदा प्राणोऽपानश्चाहवनीयकः । दक्षिणाग्निस्तथा व्यानः समानश्चावसथ्यकः ॥ सभ्योदानः स्मृता ह्येते पावकाः परमोत्कटाः । ), नारद २.४५.८४( दक्षिणाग्नि से फल्गु तीर्थ की उत्पत्ति - दक्षिणाग्रौ कृतं नूनं तद्भवं फल्गुतीर्थकम् ॥ यस्मिन्फलति फल्ग्वां गौः कामधेनुर्जलं मही ॥ ), २.४६.२२( दक्षिणाग्नि पदमें श्राद्ध करने से वाजपेय फल प्राप्त होने का उल्लेख, अन्य अग्नियों में श्राद्ध से अन्य फलों की प्राप्ति - दक्षिणाग्निपदे श्राद्धी वाजपेयफलं लभेत् ।।गार्हपत्यपदे श्राद्धी राजसूयफलं लभेत् ।। श्राद्धँ कृत्वा चंद्रपदे वाजिमेधफलं लभेत् ।। श्राद्धं कृत्वा सत्यपदे ज्योतिष्टोमफलं लभेत् ।। आवसथ्यपदे श्राद्धी सोमलोकपवाप्नुयात् ।। ), पद्म १.९.९९( पितर श्राद्ध कर्म को दक्षिणाग्नि पर करने का निर्देश - दक्षिणाग्नौ प्रणीतेन स एवाग्निर्द्विजोत्तमः ), भागवत ४.४.३२( दक्ष के यज्ञ में शिव गणों के नाश के लिए भृगु द्वारा दक्षिणाग्नि से ऋभुओं को उत्पन्न करना - यज्ञघ्नघ्नेन यजुषा दक्षिणाग्नौ जुहाव ह ॥ अध्वर्युणा हूयमाने देवा उत्पेतुरोजसा ।ऋभवो नाम तपसा सोमं प्राप्ताः सहस्रशः ॥ ), ४.५.२६( वीरभद्र द्वारा दक्ष के सिर की दक्षिणाग्नि में आहुति देने का उल्लेख - जुहावैतच्छिरस्तस्मिन् दक्षिणाग्नावमर्षितः । ), ६.९.१२( अन्वाहार्य पचन अग्नि से त्वष्टा द्वारा वृत्र की सृष्टि - इन्द्रशत्रो विवर्धस्व मा चिरं जहि विद्विषम् । अथान्वाहार्यपचनादुत्थितो घोरदर्शनः ॥ ), १०.६६.३०( काशिराज - पुत्र सुदक्षिण द्वारा कृष्ण वध हेतु दक्षिणाग्नि से कृत्या उत्पन्न करने का वृत्तान्त - दक्षिणाग्निं परिचर ब्राह्मणैः सममृत्विजम्। अभिचारविधानेन स चाग्निः प्रमथैर्वृतः ), मत्स्य १६.२१( अन्वाहार्यक श्राद्ध की विस्तृत विधि - पितृयज्ञं विनिर्वर्त्य तर्पणाख्यन्तु योऽग्निमान्। पिण्डान्वाहार्यकं कुर्य्याच्छ्राद्धमिन्दुक्षये मुदा।। ), विष्णुधर्मोत्तर १.१३६.३२( पुरूरवा द्वारा अग्नि को त्रेधा विभाजित करके यजन करने का उल्लेख ; आहवनीय वासुदेव, दक्षिणाग्नि संकर्षण व गार्हपत्य प्रद्युम्न होने का उल्लेख - अग्निराहवनीयस्तु वासुदेवो नराधिप ।। दक्षिणाग्निस्तथा ज्ञेयो नित्यं संकर्षणो बुधैः ।। तथा च गार्हपत्योऽग्निः प्रद्युम्नः परिपठ्यते ।। तथैवौपसदो राजन्ननिरुद्धः प्रकीर्तितः ।। ), स्कन्द ६.१८८.१०( ब्रह्मा के अग्निष्टोम यज्ञ में औदुम्बरी कन्या द्वारा शङ्कु प्रचार कर्म में रत उद्गाता ऋत्विज को दक्षिणाग्नि में होम करने का निर्देश - दक्षिणाग्नौ द्रुतं गत्वा कुरु होमं यथोदितम् ॥ येन त्वं मुच्यसे पापान्न चेद्व्यर्थो भविष्यति ॥ ), ७.१.१०५.६४( दक्षिणाग्नि शिव, गार्हपत्य हरि व आहवनीय ब्रह्मा होने का उल्लेख - दक्षिणाग्निरहं ज्ञेयो गार्हपत्यो हरिः स्मृतः ॥ ब्रह्मा चाहवनीयस्तु एवं सर्वं त्रिदैवतम् ॥ ), महाभारत वन २२१.२५( दक्षिणाग्नि का अन्य दो अग्नियों से संयोग हो जाने पर वीति अग्नि के लिए अष्टाकपाल इष्टि करने का निर्देश - दक्षिणाग्निर्यदा द्वाभ्यां संसृजेत तदा किल। इष्टिरष्टाकपालेन कार्या वै वीतयेऽग्नये ।। ), अनुशासन ८७.६( पितरों के श्राद्ध का अन्वाहार्य नाम - पिण्डान्वाहार्यकं श्राद्धं कुर्यान्मासानुमासिकम्। ), द्र. आहवनीय anvaahaaryapachana / anvaharyapachana Comments on Anvaahaaryapachana
अपचिति लक्ष्मीनारायण १.३८२.१८२(मरीचि की ४ कन्याओं तुष्टि, वृष्टि आदि में से एक) अपमान स्कन्द ५.१.४.३२( हुंकार अग्नि के भोजन का रूप ), ५.२.२५.४०( विद्या की मानापमान से रक्षा करने का निर्देश ) apamaana
अपरा स्कन्द ७.१.३०७.१( अपर नारायण द्वारा अपर नाम प्राप्ति का कारण ), लक्ष्मीनारायण १.२५०( अपरा एकादशी व्रत की विधि व माहात्म्य ), २.२००( अपरानाविका पुरी में कृष्ण का आगमन ), कथासरित् ८.१.४३( अपरान्त देश का सुभट राजा ) aparaa
अपराजित ब्रह्माण्ड ३.४.२२.९४( कुरण्ड दैत्य से युद्ध करने वाली अश्वारूढा देवी के अश्व का नाम ), भागवत ५.२०.३९( लोकालोक पर्वत पर ४ दिशाओं में स्थित गजराजों में से एक ), ८.१०.३०( देवासुर सङ्ग्राम में अपराजित का नमुचि से युद्ध ), १०.६१.१५( कृष्ण व माद्री लक्ष्मणा के पुत्रों में से एक ), वामन ९०.११( पारियात्र पर्वत पर विष्णु का अपराजित नाम से वास ), कथासरित् १७.२.१४३( शिव द्वारा मुक्ताफलकेतु को प्रदत्त खड्ग का नाम ) aparaajita/ aparajita
अपराजिता अग्नि १४२.१८( अपराजिता ओषधि की महिमा व मन्त्र ), देवीभागवत ८.१३.२२( शाक द्वीप की नदी ), नारद १.११७.५( वैशाख शुक्ल अष्टमी को अपराजिता देवी की पूजा ), १.१२१.११२( अपराजिता द्वादशी को नारायण की अर्चना ), मत्स्य १७९.१३( अन्धक का रुधिर पान करने के लिए शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक ), स्कन्द १.२.६२.५४( अपराजिता विद्या मन्त्र व माहात्म्य ), लक्ष्मीनारायण १.२६५.१०( हृषीकेश की पत्नी अपराजिता का उल्लेख ), कथासरित् १५.१.७०( शिव द्वारा गुफा के उत्तर द्वार की रक्षा के लिए नियुक्त तीन देवियों में से एक अथवा चण्डिका का विशेषण ) aparaajitaa अपराध अग्नि २२७( अपराध अनुसार दण्ड का वर्णन ), २५८.२६( साहस शब्दार्थ व दण्ड, विक्रय में अपराध पर दण्ड आदि ), भविष्य ४.१४६( अपराध शमन व्रत, विभिन्न अपराधों के प्रकार, जनार्दन पूजा ), भागवत ६.८( अपराध से रक्षा करने वाले देवों के नाम ), वराह ११७( उपासना में ३२ अपराध ), द्र. दण्ड, पाप, प्रायश्चित्त aparaadha
अपर्णा ब्रह्माण्ड २.३.१०.८( एकपर्णा, एकपाटला व अपर्णा के तप का वर्णन ), वायु ७२.७/२.११.७( मेना - पुत्री, उमा नाम प्राप्ति ), ७२.७( एकपर्णा, एकपाटला व अपर्णा के तप का वर्णन ), स्कन्द १.१.२१.१४२( पार्वती द्वारा निराहार तप से अपर्णा नाम प्राप्ति का वर्णन ), हरिवंश १.१८( एकपर्णा, एकपाटला व अपर्णा के तप का वर्णन ) aparnaa |