पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (Anapatya to aahlaada only) by Radha Gupta, Suman Agarwal, Vipin Kumar Anapatya - Antahpraak (Anamitra, Anaranya, Anala, Anasuuyaa, Anirudhdha, Anil, Anu, Anumati, Anuvinda, Anuhraada etc.) Anta - Aparnaa ((Antariksha, Antardhaana, Antarvedi, Andhaka, Andhakaara, Anna, Annapoornaa, Anvaahaaryapachana, Aparaajitaa, Aparnaa etc.) Apashakuna - Abhaya (Apashakuna, Apaana, apaamaarga, Apuupa, Apsaraa, Abhaya etc.) Abhayaa - Amaavaasyaa (Abhayaa, Abhichaara, Abhijit, Abhimanyu, Abhimaana, Abhisheka, Amara, Amarakantaka, Amaavasu, Amaavaasyaa etc.) Amita - Ambu (Amitaabha, Amitrajit, Amrita, Amritaa, Ambara, Ambareesha, Ambashtha, Ambaa, Ambaalikaa, Ambikaa, Ambu etc.) Ambha - Arishta ( Word like Ayana, Ayas/stone, Ayodhaya, Ayomukhi, Arajaa, Arani, Aranya/wild/jungle, Arishta etc.) Arishta - Arghya (Arishtanemi, Arishtaa, Aruna, Arunaachala, Arundhati, Arka, Argha, Arghya etc.) Arghya - Alakshmi (Archanaa, Arjuna, Artha, Ardhanaareeshwar, Arbuda, Aryamaa, Alakaa, Alakshmi etc.) Alakshmi - Avara (Alakshmi, Alamkara, Alambushaa, Alarka, Avataara/incarnation, Avantikaa, Avabhritha etc.) Avasphurja - Ashoucha (Avi, Avijnaata, Avidyaa, Avimukta, Aveekshita, Avyakta, Ashuunyashayana, Ashoka etc.) Ashoucha - Ashva (Ashma/stone, Ashmaka, Ashru/tears, Ashva/horse etc.) Ashvakraantaa - Ashvamedha (Ashwatara, Ashvattha/Pepal, Ashvatthaamaa, Ashvapati, Ashvamedha etc.) Ashvamedha - Ashvinau (Ashvamedha, Ashvashiraa, Ashvinau etc.) Ashvinau - Asi (Ashvinau, Ashtaka, Ashtakaa, Ashtami, Ashtaavakra, Asi/sword etc.) Asi - Astra (Asi/sword, Asikni, Asita, Asura/demon, Asuuyaa, Asta/sunset, Astra/weapon etc.) Astra - Ahoraatra (Astra/weapon, Aha/day, Ahamkara, Ahalyaa, Ahimsaa/nonviolence, Ahirbudhnya etc.) Aa - Aajyapa (Aakaasha/sky, Aakashaganga/milky way, Aakaashashayana, Aakuuti, Aagneedhra, Aangirasa, Aachaara, Aachamana, Aajya etc.) Aataruusha - Aaditya (Aadi, Aatma/Aatmaa/soul, Aatreya, Aaditya/sun etc.) Aaditya - Aapuurana (Aaditya, Aanakadundubhi, Aananda, Aanarta, Aantra/intestine, Aapastamba etc.) Aapah - Aayurveda (Aapah/water, Aama, Aamalaka, Aayu, Aayurveda, Aayudha/weapon etc.) Aayurveda - Aavarta (Aayurveda, Aaranyaka, Aarama, Aaruni, Aarogya, Aardra, Aaryaa, Aarsha, Aarshtishena, Aavarana/cover, Aavarta etc.) Aavasathya - Aahavaneeya (Aavasathya, Aavaha, Aashaa, Aashcharya/wonder, Aashvin, Aashadha, Aasana, Aasteeka, Aahavaneeya etc.) Aahavaneeya - Aahlaada (Aahavaneeya, Aahuka, Aahuti, Aahlaada etc. )
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अवस्फूर्ज ब्रह्माण्ड १.२.१२.३१( अग्नि, अन्य नाम विवस्वान् व आस्थान )
अवि कूर्म १.७.५४( अवि का ब्रह्मा के वक्ष से प्राकट्य ), नारद १.५०.६१( अवि द्वारा गान्धार स्वर के वादन का उल्लेख ), पद्म १.३.१०५( अवि की ब्रह्मा के वक्ष से सृष्टि ), भविष्य ४.१६३( अवि दान विधि ), स्कन्द ५.३.१५६.२३( अवि क्षीर भक्षण के पाप का चान्द्रायण व्रत आदि से नष्ट होने का कथन ), लक्ष्मीनारायण १.२०४.६५( वैराग्य से अवि बन्धन का उल्लेख ), द्र. मेष Avi अविज्ञात अग्नि १८.३८(अनल वसु - पुत्र), ब्रह्माण्ड १.२.१०.७९( अविज्ञात गति : ईशान/अनिल व शिवा - पुत्र, वसुगण वंश ), भागवत ४.२८( पुरञ्जन - मित्र, ब्राह्मण रूप में स्त्री योनि धारी पुरञ्जन को बोध ), ५.२०.९( शाल्मलि द्वीप के ७ खण्डों में से एक ), वायु ६६.२५/२.५.२५( अविज्ञात गति : ईशान/अनिल व शिवा - पुत्र, वसुगण वंश )Avijnaata अविद्या नारद १.४६.८६( केशिध्वज नृप द्वारा खाण्डिक्य को अविद्या तरु के स्वरूप का कथन ), पद्म ६.३०.३७( अविद्या तम से व्याप्त संसार में दीप द्वारा ज्ञान व मोक्ष प्रदान करने का मन्त्र ), ६.१३२.८३( अविद्या के कारण लोक में कर्म के स्वरूप का ज्ञान न होने का उल्लेख ; विष्णु दैवत्य कर्म होने पर गर्भ से मुक्ति ), ६.२२७.५२( सर्ग, स्थिति और लय रूप से अविद्या प्रकृति माया के तीन गुणों का उल्लेख ; तुलनीय : शाण्डिल्योपनिषद ३.१ में अविद्या के लोहित, शुक्ल व कृष्ण रूपों का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.१.५.३२( पञ्चपर्वा अविद्या का उल्लेख ), भविष्य ३.४.८.८९( अव्यक्त से व्यक्त स्थिति में आने /अहंकार उत्पन्न होने पर १६ अङ्गों वाली बुद्धि का नाम, अन्य नाम अजा ), भागवत ३.२०.१८( ब्रह्मा द्वारा स्व छाया से पञ्चपर्वा अविद्या की सृष्टि ), वराह ३१.१५( अविद्या विजय के रूप में शङ्ख प्रतीक का उल्लेख ), विष्णु १.५.५( पञ्चपर्वा अविद्या की सृष्टि ), १.२२.७४( विष्णु की दिव्य विद्यात्मक असि का कोश अविद्या का प्रतीक ), ६.७.६१( विष्णु की परा, अपरा व अविद्या नामक ३ शक्तियों का वर्णन ), विष्णुधर्मोत्तर ३.४७.५( अज्ञान और विद्या के मध्य स्थित अविद्या के उत्तम होने का कथन ), शिव ७.१.६.४३( क्षर के अविद्या व अमृत के विद्या होने का उल्लेख ), स्कन्द १.१.२२.१०४( अविद्या रूपी देह से परे विदेह होने का निर्देश ), १.१.२४.६२(काम द्वारा अविद्या से आवृत करके मोहित किए जाने पर शिव द्वारा विवाह को अविद्या का मूल कहना ), १.२.१३.५९( संवर्त ऋषि द्वारा अविद्या के अन्तर्गत होने वाले हिंसात्मक यज्ञ से अपना प्रयोजन न होने का कथन ), १.२.४२.१५१( अविद्या के घोर वन और विद्या महावन का वर्णन ), २.३.२.३५( विद्याश्रित होकर सकल ईश और अविद्या द्वारा जीव की उपासना का उल्लेख ), २.३.५.१९( अविद्या के प्रतिबिम्ब से जीव भाव प्राप्त होने का उल्लेख ), ३.१.४३.११( दीप आरोपण से अविद्या पटल नाश का उल्लेख ), ३.१.४९.३१(नल द्वारा अविद्या – विहीन रामेश्वर की स्तुति), ३.१.४९.३३(जाग्रत, स्वप्न आदि की अविद्या में गणना), ५.३.१५९.१६( अविद्या दान से बृलीवर्द योनि प्राप्त होने का उल्लेख ), योगवासिष्ठ ३.११३+ ( अविद्या की निन्दा व अविद्या निग्रह के उपाय का वर्णन ), ४.४१+ ( वही), ६.१.८( संसार वन में अविद्या की लता रूप में कल्पना ), ६.१.९( अविद्या के संक्षय से विद्या के उदय का कथन ), ६.१.१०( वासना त्याग व सतत् अवलोकन से अविद्या नाश का कथन ), ६.२.१०८+ ( अविद्या के संदर्भ में राजा विपश्चित् की विस्तृत कथा ), महाभारत शान्ति २१८.३३( अविद्या रूपी क्षेत्र में कर्म बीज तथा तृष्णा रूपी स्नेह का उल्लेख ), ३०७.४( अविद्या के अव्यक्त प्रकृति, २४ तत्वों की परमेश्वरी, सर्ग व प्रलय धर्मी होने तथा २५वें तत्व के सर्ग व प्रलय से मुक्त विद्या होने का उल्लेख ), ३१८.४१अतिरिक्त(अविद्या के प्रकृति और विद्या के पुरुष होने का उल्लेख), आश्वमेधिक ५१.२८( अव्यक्त से १६ विशेषान्त तक अविद्या लक्षण होने का उल्लेख ), ५१.३१( जन्तु के कर्म से षोडशात्मक होने तथा पुरुष के अविद्या से ग्रसे जाने आदि का उल्लेख )Avidyaa अविन्ध्य हरिवंश २.७४.४२( अविन्ध्या : बिल्वोदकेश्वर क्षेत्र में गङ्गा का अविन्ध्या नाम होने का उल्लेख ), वा.रामायण ५.३७.१२( रावण का सम्मान प्राप्त एक मेधावी राक्षस, रावण को भावी विनाश का पूर्वकथन, सीता को लौटा देने का परामर्श )Avindhya
अविमुक्त देवीभागवत ७.३८( अविमुक्त क्षेत्र में विशालाक्षी देवी का वास ), ब्रह्माण्ड २.३.६७.६२( वाराणसी का नाम, शब्दार्थ ), मत्स्य १८१+ ( अविमुक्त क्षेत्र का माहात्म्य ), १८४.३३(अविमुक्त के सिवाय भूमि के मेद से लिप्त होने का उल्लेख), लिङ्ग १.९२.१४२( अविमुक्त शब्द की निरुक्ति ), स्कन्द २.२.१२( अविमुक्त क्षेत्र : शिव द्वारा स्थापना, कृष्ण द्वारा काशिराज का वध ), ४.१.२६( अविमुक्त क्षेत्र का माहात्म्य, निरुक्ति, अन्तर्वर्ती तीर्थों का माहात्म्य ), ४.१.३३.१६९( शिव के शरीर में दक्षिण कर का रूप ), ४.१.३९.७४+ ( अविमुक्तेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, अविमुक्त क्षेत्र प्राप्ति का उपाय ), ५.२.७८.५२( अविमुक्तेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, मनोरमा द्वारा पिता सहित पूजा, पूर्व जन्म का वृत्तान्त ), द्र. काशी, वाराणसी Avimukta अवियुक्त स्कन्द ७.३.५७( अवियुक्त क्षेत्र का माहात्म्य, शक्र द्वारा पुन: राज्य से युक्त होना )
अवीक्षित मार्कण्डेय १२२+/११९+ ( करन्धम व वीरा - पुत्र, ग्रहों की विशेष स्थिति से नाम की सार्थकता, विशाला कन्या के स्वयंवर में विशाला का हरण, अन्य राजाओं द्वारा बन्धन व मोचन, विशाला का त्याग, वन में तपोरत विशाला की राक्षस से रक्षा व विवाह, मरुत्त पुत्र प्राप्ति आदि ), लक्ष्मीनारायण १.४०९( वही)aveekshita/ avikshita
अव्यक्त नारद १.४२.१४( अव्यक्त देव से जीवों की सृष्टि आदि का कथन, अव्यक्त से आकाश की सृष्टि ), १.६३.६५( ३ गुणों के आधार की अव्यक्त संज्ञा? ),पद्म १.४०.१४५(अव्यक्तानन्द सलिल वालेv समुद्र में ११ रुद्रों की ११ पत्तनों? से उपमा), ब्रह्माण्ड १.१.३.३७( अव्यक्त के क्षेत्र तथा ब्रह्म के क्षेत्रज्ञ होने का उल्लेख ), भविष्य ३.४.८.८८( अव्यक्त और व्यक्त स्थितियों में बुद्धि व अहंकार के प्रकारों का कथन ), ३.४.२५.२१( अव्यक्त/अज के विभिन्न अङ्गों से ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति का वर्णन ), वराह २५.२( पुर पुरुष से अव्यक्त की उत्पत्ति, उमा या श्री के अव्यक्त होने का कथन, पुरुष व अव्यक्त से अहंकार की उत्पत्ति ), वायु १०३.३६/२.४३.३६(अव्यक्त कारण से प्रधान व पुरुष से महेश्वर के जन्म का कथन), विष्णु १.२.१८( व्यक्त के विष्णु तथा अव्यक्त के कालपुरुष होने का उल्लेख ), हरिवंश ३.१७.४७(अव्यक्त की मूर्द्धा से अथर्ववेद की उत्पत्ति का उल्लेख), महाभारत शान्ति २१७.६( अव्यक्त व पुरुष से परे विशेष का कथन ), ३१८.४१(अव्यक्त प्रकृति का सूर्य नाम), ३२९.४९( इन्द्रियों से ग्रहण होने वाले विषयों की व्यक्त तथा न होने वालों की अव्यक्त संज्ञा का उल्लेख ), ३३९.३१( मन के अव्यक्त पुरुष में व अव्यक्त पुरुष के निष्क्रिय पुरुष में लीन होने का कथन ), ३४७.१५( मन के व्यक्त में लीन होने, व्यक्त के अव्यक्त में, अव्यक्त के पुरुष में लीन होने का कथन )avyakta
अव्यङ्ग नारद १.११६.२९( श्रावण शुक्ल सप्तमी को अव्यङ्ग व्रत की विधि ), भविष्य १.१४२.१२( अव्यङ्ग की वासुकि नाग से उत्पत्ति, सूर्य आराधना में अव्यङ्ग धारण का माहात्म्य )avyanga
अव्यय पद्म ५.१०६.६४( अव्यया ब्राह्मणी : नारद से पति की मृत्यु का ज्ञान होने पर चिता में भस्म होना, पति द्वारा मृत्यु - पश्चात् श्वान योनि प्राप्ति, श्वान का मृत्यु - पश्चात् शिव गण बनना ), ब्रह्माण्ड २.३.१.९०( भृगु व पुलोमा के १२ पुत्रों में से एक ), ३.४.१.१०२( १३वें मन्वन्तर के एक ऋषि ), भविष्य ३.४.२५.११३( अव्यय पुरुष से स्कन्दन से स्कन्द की उत्पत्ति का उल्लेख ), मत्स्य १९५.१३( भृगु व पुलोमा के १२ पुत्रों में से एक ), वायु ६७.३४/२.६.३४( स्वायम्भुव मन्वन्तर में अजित देवगण में से एक ), विष्णु ३.२.४०( १३वें मन्वन्तर में एक ऋषि ), स्कन्द ३.३.१२.२२( अव्यय शिव से शयन स्थिति में रक्षा की प्रार्थना )avyaya अव्याकृत गरुड ३.१०.१६(अव्याकृत आकाश में अव्यय हरि के वास का कथन), लक्ष्मीनारायण २.१४०.९( अव्याकृत प्रासाद के लक्षण )
अशना भागवत ६.१८.१७( बलि - पत्नी, बाण आदि १०० पुत्र ), लक्ष्मीनारायण १.३१९.६( जोष्ट्री - पुत्री अशना द्वारा देवों की सेवा ), १.३१९.१०४( जोष्ट्री - पुत्री, श्रीहरि - पत्नी अशना की उच्च दृष्टिकोण से निरुक्ति ), २.२९७.९०( अशनादि ३३० पत्नियों के गृह में कृष्ण द्वारा शय्या रमण के कृत्य का उल्लेख )ashanaa
अशनिप्रभ वा.रामायण ६.४३.१२( रावण - सेनानी, द्विविद से युद्ध )
अशून्यशयन अग्नि १७०( अशून्यशयन व्रत : श्रावण कृष्ण द्वितीया ), नारद २.११( अशून्यशयन व्रत : श्रावण द्वितीया को व्रत अनुष्ठान से शूद्र का राजा रुक्माङ्गद बनना ), पद्म २.८८( अशून्यशयन व्रत : दिव्या देवी की पति मरण दोष से मुक्ति ), भविष्य ४.१५( अशून्यशयन व्रत विधि व माहात्म्य ), मत्स्य ७१( अशून्यशयन द्वितीया व्रत : श्रावण कृष्ण द्वितीया को गोविन्द की पूजा, शय्या दान ), विष्णुधर्मोत्तर १.१४५( अशून्यशयन द्वितीया व्रत विधि व माहात्म्य ), स्कन्द २.७.१०३( अशून्यशयन व्रत विधि व माहात्म्य ), ६.४१( चातुर्मास में शान्ति हेतु अशून्यशयन व्रत का माहात्म्य : इन्द्र द्वारा बाष्कलि का वध ), ६.२३१( इन्द्र द्वारा वृत्र के भय से मुक्ति हेतु अशून्यशयन व्रत का चीर्णन : सांकृति मुनि व वृक असुर की कथा ), ६.२६५.२३( अशून्यशयन व्रत का माहात्म्य ), लक्ष्मीनारायण २.२७.६५( अशून्यशयन द्वितीया व्रत विधि : लक्ष्मी व कृष्ण की पूजा, चातुर्मास्य व्रत )ashunyashayana
अशोक अग्नि १७८.९( चैत्र शुक्ल तृतीया को ललिता देवी का अशोक मधुवासिनी नाम से ओष्ठ में न्यास ), १९४.१( अशोक पूर्णिमा व्रत की संक्षिप्त विधि ), २४७.३०( अशोक वृक्ष के पल्लवन के लिए कामिनी पाद ताडन का उल्लेख ), गरुड १.१३३.२( अशोक अष्टमी व्रत ), नारद १.७०.५९( अशोक फलक में तार्क्ष्य के लेखन व पूजन आदि से तार्क्ष्य/गरुड के प्रकट होने का कथन ), १.७४.७८( हनुमान द्वारा अशोक वाटिका में अक्षकुमार के वध का उल्लेख ), १.८२.११९, १४४( अशोक वन सन्नद्ध : कृष्ण व राधा के सहस्र नामों में से एक ), १.८९.१२९( अशोका : ललिता देवी के सहस्रनामों में से एक ), १.११०.२७( अशोक व्रत : आश्विन् शुक्ल प्रतिपदा ), १.११७.२( चैत्र शुक्ल अष्टमी को अशोक कलिका प्राशन का विधान ), १.११७.७४( अशोक अष्टमी व्रत विधि ), १.१२२.४१( अशोक त्रयोदशी व्रत की विधि ), पद्म १.२८.२४( अशोक वृक्ष : नाशकारी ), १.२९.२६( ललिता देवी की आराधना के संदर्भ में ओष्ठ में ललिता का अशोकवनवासिनी नाम से न्यास ), २.१०२+ ( अशोकसुन्दरी : पार्वती के चिन्तन से उत्पत्ति, नहुष - पत्नी, हुण्ड दैत्य द्वारा हरण, नहुष द्वारा रक्षा करना ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.२.१०३.५२( नगर में आरोपण योग्य शुभ वृक्षों में से एक ), भविष्य ४.९( अशोक व्रत की विधि व माहात्म्य : अशोक वृक्ष की पूजा ), ४.१०५( अशोक पूर्णिमा व्रत ), स्कन्द २.२.४४.४( चैत्र मास में श्रीहरि की मूर्ति की अशोक पुष्प से पूजा तथा अन्य मासों में अन्य पुष्पों से पूजा का निर्देश ), २.५.७.२३( पुष्पों की आपेक्षिक महिमा कथन के संदर्भ में अशोक पुष्प के चम्पक पुष्प से श्रेष्ठ होने व शेवन्ती पुष्प से हीन होने का उल्लेख ), ४.२.८०.३७( चैत्र शुक्ल तृतीया को मनोरथ व्रत में नैवेद्य के रूप में अशोक वर्ति का उल्लेख ), ४.२.८३.९२( अशोक तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : शोक से मुक्ति ), ५.३.१९८.७( अशोक आश्रम में तपोरत माण्डव्य मुनि के शूल से पीडित होने तथा शिव कृपा से शूल के अमृतस्रावी होने का वृत्तान्त ), ५.३.२३१.२४( रेवा - सागर सङ्गम पर २ अशोकेश्वर तीर्थों की स्थिति का उल्लेख ), ६.२५२.३३( चातुर्मास में अशोक वृक्ष में विद्युत की स्थिति का उल्लेख ), वा.रामायण ५.१४( अशोक वाटिका : हनुमान द्वारा लङ्का में शोभा दर्शन ), ५.२२.२८( कल्पवृक्ष रूपी रावण के कुण्डलों की २ अशोक वृक्षों से उपमा ), ५.४१.२०( अशोकवाटिका : प्रमदा वन का नाम, हनुमान द्वारा विध्वंस ), ६.२५२.३३(विद्युत के अशोक में प्रवेश का उल्लेख), ७.४२( अशोकवनिका : शोभा वर्णन, राम व सीता का विहार ), महाभारत आदि ६७.१४( अश्व नामक असुर के द्वापर में अशोक राजा के रूप में जन्म लेने का उल्लेख ), ८२.२( देवयानी की दासी शर्मिष्ठा का महल अशोक वनिका के निकट होने का कथन ), वन ६४.१०१( नल के विरह से पीडित दमयन्ती द्वारा अशोक वृक्ष से पति मिलन कराने की प्रार्थना ), २८०.४२( अशोक वाटिका में राक्षसियों द्वारा सीता को भय प्रदर्शन आदि ), २८९.२७( अशोक वाटिका में सीता के वध को उद्धत रावण को मन्त्री अविन्ध्य द्वारा शान्त करना ), शान्ति १९८.८( परमात्मा के अशोक/शोकरहित होने आदि का उल्लेख ), ३२९.२०( नारद द्वारा शुकदेव को शोक त्याग कर अशोक स्थान में स्थित होने का निर्देश ), ३३०.१( शास्त्रों द्वारा अशोक होने का उल्लेख ), अनुशासन १९.२९( अष्टावक्र द्वारा बाहुदा नदी तट पर अशोक तीर्थ में विश्राम का उल्लेख ), १४९.५०( विष्णु सहस्रनामों में से एक ) लक्ष्मीनारायण १.४४१.८०( वृक्ष, विद्युत का रूप ), १.५७३.२०( राजा रविचन्द्र द्वारा अशोक वनिका में यज्ञ का अनुष्ठान, यज्ञ की महिमा ), कथासरित् ८.६.६( अशोकवती : राजा महासेन की पत्नी, गुणशर्मा मन्त्री पर आसक्ति, मन्त्री द्वारा उपेक्षा पर मन्त्री के विरुद्ध षडयन्त्र ), ९.२.३४( अशोकमाला : बलसेन क्षत्रिय की पुत्री, हठशर्मा से बलपूर्वक विवाह, पूर्व जन्म में अशोककर विद्याधर की पुत्री ),१२.४.१५४( अशोककरी : हंसावली की सखी, अन्य सखी कनकमञ्जरी द्वारा अशोककरी की बलि देने की चेष्टा ),ashoka अशोकदत्त स्कन्द ३.१.८+ ( गोविन्दस्वामी के पुत्र अशोकदत्त द्वारा मल्ल का हनन, राक्षसी से नण्पुर प्राप्ति, मदनलेखा से विवाह, विद्युत्प्रभा से विवाह, सुवर्णकमल की प्राप्ति, मुक्ति, पूर्व जन्म में विद्याधर ), कथासरित् ५.२.७५( वही)
अशौच अग्नि १५७( मृत्यु पर अशौच का वर्णन ), गरुड १.१०६( मृत्यु पर अशौच ), १.२१४( विभिन्न पातकों के लिए अशौच काल का निर्धारण ), २.१४( बाल मृत्यु पर अशौच काल ), भविष्य १.१८६( विभिन्न संस्कारी में अशौच ), मत्स्य १८.१( मृत्यु पर अशौच काल ), विष्णु ३.१३.१२( मृत्यु पर अशौच का विधान ), विष्णुधर्मोत्तर ३.२.३१+ ( विभिन्न परिस्थितियों में द्रव्यों व स्वयं की शुद्धि की विधि )ashoucha/ ashaucha |