पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (Anapatya to aahlaada only) by Radha Gupta, Suman Agarwal, Vipin Kumar Anapatya - Antahpraak (Anamitra, Anaranya, Anala, Anasuuyaa, Anirudhdha, Anil, Anu, Anumati, Anuvinda, Anuhraada etc.) Anta - Aparnaa ((Antariksha, Antardhaana, Antarvedi, Andhaka, Andhakaara, Anna, Annapoornaa, Anvaahaaryapachana, Aparaajitaa, Aparnaa etc.) Apashakuna - Abhaya (Apashakuna, Apaana, apaamaarga, Apuupa, Apsaraa, Abhaya etc.) Abhayaa - Amaavaasyaa (Abhayaa, Abhichaara, Abhijit, Abhimanyu, Abhimaana, Abhisheka, Amara, Amarakantaka, Amaavasu, Amaavaasyaa etc.) Amita - Ambu (Amitaabha, Amitrajit, Amrita, Amritaa, Ambara, Ambareesha, Ambashtha, Ambaa, Ambaalikaa, Ambikaa, Ambu etc.) Ambha - Arishta ( Word like Ayana, Ayas/stone, Ayodhaya, Ayomukhi, Arajaa, Arani, Aranya/wild/jungle, Arishta etc.) Arishta - Arghya (Arishtanemi, Arishtaa, Aruna, Arunaachala, Arundhati, Arka, Argha, Arghya etc.) Arghya - Alakshmi (Archanaa, Arjuna, Artha, Ardhanaareeshwar, Arbuda, Aryamaa, Alakaa, Alakshmi etc.) Alakshmi - Avara (Alakshmi, Alamkara, Alambushaa, Alarka, Avataara/incarnation, Avantikaa, Avabhritha etc.) Avasphurja - Ashoucha (Avi, Avijnaata, Avidyaa, Avimukta, Aveekshita, Avyakta, Ashuunyashayana, Ashoka etc.) Ashoucha - Ashva (Ashma/stone, Ashmaka, Ashru/tears, Ashva/horse etc.) Ashvakraantaa - Ashvamedha (Ashwatara, Ashvattha/Pepal, Ashvatthaamaa, Ashvapati, Ashvamedha etc.) Ashvamedha - Ashvinau (Ashvamedha, Ashvashiraa, Ashvinau etc.) Ashvinau - Asi (Ashvinau, Ashtaka, Ashtakaa, Ashtami, Ashtaavakra, Asi/sword etc.) Asi - Astra (Asi/sword, Asikni, Asita, Asura/demon, Asuuyaa, Asta/sunset, Astra/weapon etc.) Astra - Ahoraatra (Astra/weapon, Aha/day, Ahamkara, Ahalyaa, Ahimsaa/nonviolence, Ahirbudhnya etc.) Aa - Aajyapa (Aakaasha/sky, Aakashaganga/milky way, Aakaashashayana, Aakuuti, Aagneedhra, Aangirasa, Aachaara, Aachamana, Aajya etc.) Aataruusha - Aaditya (Aadi, Aatma/Aatmaa/soul, Aatreya, Aaditya/sun etc.) Aaditya - Aapuurana (Aaditya, Aanakadundubhi, Aananda, Aanarta, Aantra/intestine, Aapastamba etc.) Aapah - Aayurveda (Aapah/water, Aama, Aamalaka, Aayu, Aayurveda, Aayudha/weapon etc.) Aayurveda - Aavarta (Aayurveda, Aaranyaka, Aarama, Aaruni, Aarogya, Aardra, Aaryaa, Aarsha, Aarshtishena, Aavarana/cover, Aavarta etc.) Aavasathya - Aahavaneeya (Aavasathya, Aavaha, Aashaa, Aashcharya/wonder, Aashvin, Aashadha, Aasana, Aasteeka, Aahavaneeya etc.) Aahavaneeya - Aahlaada (Aahavaneeya, Aahuka, Aahuti, Aahlaada etc. )
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Puraanic contexts of words like Ashwatara, Ashvattha/Pepal, Ashvatthaamaa, Ashvapati, Ashvamedha etc. are given here अश्वक्रान्ता नारद १.५०.३८( गान्धार स्वर में मूर्च्छा का नाम )
अश्वग्रीव ब्रह्माण्ड २.३.७१.११४( चित्रक - पुत्र, वृष्णि वंश ), वामन ६९.४९( अन्धक - सेनानी, विशाख से युद्ध ), वा.रामायण ३.१४.१६( दनु व कश्यप - पुत्र )
अश्वतर अग्नि १११.५( प्रयाग में कम्बल व अश्वतर नागों की स्थिति ), कूर्म १.१२.१८९( कम्बलाश्वतरप्रिया : गायत्री सहस्रनामों में से एक ), पद्म ३.४३.२८( प्रयाग में यमुना के दक्षिणी तट पर कम्बल व अश्वतर नागों की स्थिति ), ब्रह्माण्ड १.२.२०.२३( द्वितीय सुतल लोक में अश्वतर नाग का पुर ), २.३.७.३३( कद्रू- पुत्र ), भागवत १२.११.४४( कार्तिक मास में अश्वतर की सूर्य रथ में स्थिति ), मत्स्य १३३.२०( त्रिपुर दाह हेतु निर्मित शिव के रथ में पक्ष - यन्त्र का रूप ), मार्कण्डेय २३/२१( अश्वतर नाग द्वारा सरस्वती की आराधना से संगीत विद्या की प्राप्ति, शिव आराधना से ऋतध्वज राजा की मृत पत्नी मदालसा को पुत्री रूप में प्राप्त कर पुन: ऋतध्वज को प्रदान करना ), विष्णु २.१०.१८( फाल्गुन मास में सूर्य रथ पर अश्वतर नाग की स्थिति ), ६.८.४६( विष्णु पुराण श्रवणानुपरम्परा में वत्स से सुनकर कम्बल को सुनाना ), स्कन्द १.२.१३.१८३( शतरुद्रिय प्रसंग में अश्वतर नाग द्वारा शिव की मध्यम नाम से धान्य रूपी लिङ्ग की पूजा ), ७.४.१७.२०( अश्वतर नाग की द्वारका के दक्षिण द्वार पर स्थिति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.३९२( ऋतध्वज को मदालसा पुत्री प्रदान करने की कथा )ष्sज्ष्न्ष्दष् ashvatara/ ashwatara
अश्वत्थ गरुड ३.१२.७४(शून्य अश्वत्थ को नमन का निर्देश), देवीभागवत ७.३०.८१( अश्वत्थ तीर्थ में वन्दनीया देवी का वास ), पद्म १.२८.२३( रोगनाशक, पुत्र प्राप्ति कारक ), १.५८.५( अश्वत्थ की महिमा ), ६.११६.१८( अश्वत्थ मूल में ज्येष्ठा का स्थिर होना ), ७.१२.३८( अश्वत्थ का माहात्म्य, धनञ्जय ब्राह्मण का वृत्तान्त ), ब्रह्म २.३३.५( प्रियव्रत के यज्ञ में दानव के आगमन पर विष्णु का शरण स्थल ), २.४८.१२( कैटभ - पुत्र, पिप्पल-भ्राता, विप्रों को पीडा, शनि द्वारा भस्म करना ), २.४८.३०(शनिवार को अश्वत्थ आलभन हेतु मन्त्र), ब्रह्माण्ड २.३.११.३५( अश्वत्थ के बलि पात्र में वसु भावना? ), भविष्य १.१९३.१०( अश्वत्थ दन्तकाष्ठ की महिमा ), २.३.४( अश्वत्थ वृक्ष प्रतिष्ठा की विधि ), २.३.८( अश्वत्थ वृक्ष प्रतिष्ठा की विधि ), ४.३१.२०( अश्वत्थ मन्त्र ), भागवत ११.१६.२१( विभूति योग के अन्तर्गत कृष्ण के वनस्पतियों में अश्वत्थ होने का उल्लेख ), मत्स्य १३.५१( अश्वत्थ तीर्थ में वन्दनीया देवी का वास ), ९६.६( कालधौत/सुवर्णमय १६ फलों में से एक ), महाभारत उद्योग ४६.९(अश्वत्थ के हिरण्यपर्णों की संसार के विषयों से तुलना?), लिङ्ग १.४९.३२( विपुल पर्वत के केतु रूप अश्वत्थ का उल्लेख ), वामन १७.८( अश्वत्थ वृक्ष की रवि से उत्पत्ति ), विष्णु ४.६.८५( पुरूरवा की अग्निस्थाली का शमीगर्भ अश्वत्थ बनना, अश्वत्थ का अरणि रूप में उपयोग ), स्कन्द २.४.३टीका( विष्णु रूप, पार्वती के शाप की कथा ), २.४.३टीका( शनिवार को अश्वत्थ स्पर्श द्वारा पूजा, ज्येष्ठा - उद्दालक की कथा ), ५.१.४.९६( शमीगर्भ में उत्पन्न अश्वत्थ में भार्गव व आङ्गिरस अग्नियों के संयोग का उल्लेख ), ६.५९( विदुर द्वारा अश्वत्थ की पुत्र रूप में प्रतिष्ठा ), ६.९०.३१( अग्नि के शमीगर्भ में स्थित अश्वत्थ में छिप जाने पर शुक द्वारा देवों को बताना ), ६.१६६.१५( ब्राह्मण पुत्र प्राप्ति के लिए चरु प्राशन के पश्चात् अश्वत्थ के आलिङ्गन का उल्लेख ), ६.२४७.२५( अश्वत्थ का माहात्म्य ), ६.२५२.३६( चातुर्मास में गुरु की अश्वत्थ में स्थिति का उल्लेख ), ७.१.१७.११( अश्वत्थ दन्तकाष्ठ का माहात्म्य ), ७.४.१७.२८( द्वारका के पश्चिम द्वार पर अश्वत्थ की स्थिति ), लक्ष्मीनारायण १.४४१.९०( बृहस्पति का रूप ), १.४४१.९५( विष्णु का रूप ), २.२७.१०४( अश्वत्थ की रवि से उत्पत्ति का उल्लेख ), कथासरित् ३.६.२४( सोमदत्त द्वारा अश्वत्थ वृक्ष का आश्रय लेना, अश्वत्थ - देवता द्वारा सोम को भावी कार्य का निर्देश ), १२.२७.७१( अश्वत्थ में वास करने वाले ज्वालामुख नामक ब्रह्मराक्षस का वृत्तान्त ) द्र. पिप्पल ashwattha/ ashvattha
अश्वत्थामा गर्ग ७.२०.३२( प्रद्युम्न - सेनानी वृक से युद्ध ), देवीभागवत ४.२२.३४( शिव का अंश ), ४.२२.४७( काम, क्रोध, यम, रुद्र का अवतार ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.९६.३५( चिरजीवियों में से एक अश्वत्थामा का उल्लेख ), भागवत १.७( अश्वत्थामा द्वारा द्रौपदी - पुत्रों की हत्या, अर्जुन द्वारा मानमर्दन ), ८.१३.१५( आठवें मन्वन्तर में ऋषि ), मत्स्य ४५.३२( अक्रूर व अश्विनी - पुत्र, अनमित्र वंश ), शिव ३.३६( शिवांश, उत्तरा गर्भ पर अस्त्र प्रहार ), स्कन्द ३.१.३१( द्रौपदी - पुत्रों के सुप्तमारण दोष की निवृत्ति के लिए अश्वत्थामा द्वारा धनुष्कोटि तीर्थ में स्नान ), ४.२.७५.८०( अश्वत्थामेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य : भय से मुक्ति )ashwatthaamaa/ ashvatthama अश्वपट्ट लक्ष्मीनारायण १.५६( अश्वपट्ट सरोवर तट पर राजा खट्वाङ्ग द्वारा तप ), १.२८७( अश्वपट्ट सरोवर तट पर पत्नीव्रत ऋषि का वास, पत्नीव्रत द्वारा राजा रुक्माङ्गद के पूर्व जन्म के वृत्तान्त का कथन ), १.५२०.३७( अश्वपट्ट सरोवर की सौराष्ट्र में स्थिति, पत्नीव्रत ऋषि का वास, अश्वपट्ट सरोवर तट पर कच्छप पीठ पर राजा इन्द्रद्युम्न द्वारा यज्ञ ), २.८८( सनत्कुमार - प्रोक्त अश्वपट्ट सरोवर का माहात्म्य ), २.२४४+ ( अश्वपट्ट सरोवर तट पर अश्वपाटल नृप द्वारा सोमयाग का अनुष्ठान )ashvapatta
अश्वपति देवीभागवत ९.२६+ ( अश्वपति द्वारा पराशर से सावित्री पूजा विधान का श्रवण, सावित्री कन्या की प्राप्ति, सत्यवान् - सावित्री कथा ), ब्रह्मवैवर्त्त २.२३+ ( मद्र देश का राजा, मालती - पति, पराशर द्वारा गायत्री व सावित्री जप विधान का कथन, सावित्री - सत्यवान् की कथा ), भविष्य ४.१०२( अश्वपति द्वारा सावित्री कन्या की प्राप्ति, सावित्री - सत्यवान् की कथा ), मत्स्य २०८+ ( वही), स्कन्द ७.१.१६६( अश्वपति राजा द्वारा सावित्री व्रत चीर्णन से सावित्री कन्या की प्राप्ति, सावित्री - सत्यवान् कथा ), लक्ष्मीनारायण १.३६६( अश्वपति द्वारा पराशर से गायत्री व सावित्री जप विधान का श्रवण, सावित्री - सत्यवान् की कथा )ashvapati
अश्वपाटल लक्ष्मीनारायण २.२४४+ ( अश्वपाटल नृप द्वारा अश्वपट्ट सरोवर तट पर सोमयाग का अनुष्ठान ), २.२४९+ ( अश्वपाटल का लोमश से लोमश गीता रूपी संवाद ), २.२७२.४१( अश्वपाटल नृप के ब्रह्मह्रद का अवतार होने का उल्लेख )ashvapaatala
अश्वमुख मत्स्य २६१.५३( कामदेव की मूर्ति के पार्श्व में अश्वमुख प्रतिमा की स्थिति ), वायु ६९.३१/२.८.३१( अश्वमुख किन्नर गण : विशाल व अश्वमुखी - पुत्र ), स्कन्द ५.३.१८४.८( ब्रह्मा के पञ्चम मुख के अश्वमुख सदृश होने व रुद्र द्वारा उसके कर्तन का कथन ), ५.३.१९८.८८( अश्वत्थ तीर्थ में उमा की वंदनीका नाम से स्थिति का उल्लेख ), ६.८१.१३( ब्राह्मण - कन्या माधवी का लक्ष्मी के शाप से अश्वमुखी होना, जन्मान्तर में कृष्ण - भगिनी सुभद्रा रूप में उत्पन्न होना )ashvamukha
अश्वमेध गर्ग १०.१++ ( उग्रसेन के अश्वमेध का आरम्भ ), १०.८( अनिरुद्ध द्वारा उग्रसेन के अश्वमेधीय अश्व का अनुगमन ), नारद १.११.१३३( विप्र को द्रोणिका मात्र पृथिवी दान से गङ्गा तीर्थ में शत अश्वमेधों के फल की प्राप्ति ), १.१३.१२३( पूजा रहित लिङ्ग की अल्प उदक अथवा कुसुम से अर्चना करने पर लक्ष अश्वमेध फल की प्राप्ति ), १.१२२.४०( गो त्रिरात्र व्रत से सहस्र अश्वमेध फल की प्राप्ति ), १.१२३.४( चैत्र शुक्ल चर्तुदशी को शिव अर्चना से अश्वमेध फल की प्राप्ति ), २.१.१३( एकादशी उपवास की तुलना में अश्वमेध फल की तुच्छता का उल्लेख ), २.३९.३२( गङ्गा में स्नान से अश्वमेध फल की प्राप्ति ), २.४५.३४( फल्गु तीर्थ में आगमन से सहस्र अश्वमेध से अधिक फल की प्राप्ति ), २.६०.१( यज्ञाङ्ग से उत्पन्न तीर्थ में जाकर अश्वमेधाङ्ग संभूतं इत्यादि मन्त्र का पाठ ), २.६३.९६( प्रयाग में हंस प्रतपन तीर्थ में स्नान से अश्वमेध फल की प्राप्ति ), २.७०.३४( प्रभास तीर्थ में दुर्वासादित्य के दर्शन से अश्वमेध फल की प्राप्ति ), पद्म २.१२३.५७( वेन का सदेह विष्णु शरीर में लीन होने के लिए पृथु पुत्र की सहायता से अश्वमेध का अनुष्ठान ), ३.१२.२( जम्बू मार्ग में आने से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.१२.८( ययातिपतन में आने से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.१२.१०( कोटि तीर्थ में आने से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.१३.४६( विशल्या नदी में स्नान से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.१३.४८( नर्मदा में स्नान से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.१८.७३( नर्मदेश्वर तीर्थ में स्नान से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.२४.२०( शङ्कुकर्णेश्वर की अर्चना से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.२५.७( रुद्रास्पद तीर्थ में गमन से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.२५.२५( रुद्र कोटि तीर्थ में आगमन से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.२६.८( विष्णु के सतत् तीर्थ में आगमन से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.२७.३४( पृथूदक तीर्थ में अभिषेक आदि करने से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.२८.१९( सुवर्ण तीर्थ में वृषभध्वज की अर्चना से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.२८.३०( कनखल में स्नान से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३२.३( गङ्गा - सरस्वती सङ्गम में स्नान से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३२.७( ब्रह्मावर्त्त में गमन से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३२.८( यमुना प्रभव में गमन से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३२.९( दर्वीसंक्रमण तीर्थ में गमन से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३२.११( देवी तीर्थ में गमन से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३२.१४( भृगुतुङ्ग तीर्थ में आगमन से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३२.२१( वेतसिका में आगमन से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३८.२( गया में आगमन से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३८.१८( फल्गु तीर्थ में आगमन से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३८.१९( धर्मपृष्ठ तीर्थ में गमन से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३८.२०( ब्रह्मा के तीर्थ में आगमन से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३८.२७( श्रिय तीर्थ में उदपान तीर्थ में अभिषेक से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३८.२९( विनाशन तीर्थ में गमन से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३८.३४( माहेश्वरी धारा में आगमन से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३८.३६( माहेश्वर पद में स्नान से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३८.४२( शालग्राम तीर्थ में आगमन से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३८.५६( निष्ठावास तीर्थ में आगमन से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३८.५९( देवकूट तीर्थ में आगमन से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३८.६०( कौशिक ह्रद पर निवास से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३८.६३( कुमार तीर्थ में आगमन से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३९.३( करतोया नदी पर निवास से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३९.४( गङ्गा - सागर सङ्गम पर वास से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३९.१४( राम तीर्थ में स्नान से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३९.१७( श्रीपर्वत पर देवह्रद में स्नान से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३९.२२( गोकर्ण तीर्थ में ईशान की अर्चना से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३९.५६( मन्दाकिनी पर आकर अभिषेक आदि करने से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३९.८२( वासुकि नाग के भोगवती तीर्थ में अभिषेक से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.४३.३१( प्रयाग में प्रतिष्ठान कूप पर वास से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.४३.३३( प्रयाग में हंस प्रपतन तीर्थ में स्नान से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.८.३०+ ( राम द्वारा रावण वध जनित ब्रह्महत्या दोष से निवृत्ति के लिए अश्वमेध का अनुष्ठान, अश्व का चयन, अश्व के पृथिवी पर संचरण आदि का विस्तृत वर्णन ), ६.५६.२३( भाद्रपद कृष्ण अजा एकादशी के श्रवण से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ६.१८६.३४( अश्वमेध काल में राजा की मृत्यु पर व देवों द्वारा यज्ञीय अश्व के हरण पर राजपुत्र द्वारा लक्ष्मी की स्तुति, लक्ष्मी के आदेश से समाधि विप्र द्वारा देवों से यज्ञीय अश्व प्राप्त करना व राजा को पुन: जीवित करना, गीता के १२वें अध्याय का माहात्म्य ), ब्रह्म १.३७.१( दक्ष के हयमेध विनाश का वर्णन ), १.४५( राजा इन्द्रद्युम्न के हयमेध का वर्णन ), २.१३( प्रमति - पुत्र भौवन के एक साथ दश अश्वमेधों के अनुष्ठान में विघ्न, गौतमी तीर पर अनुष्ठान से दस अश्वमेधों का फल प्राप्त करना ), २.३३( राजा प्रियव्रत द्वारा गौतमी के दक्षिण तट पर अश्वमेध यज्ञ का अनुष्ठान, यज्ञ में हिरण्यक दानव के आगमन पर देवों का वृक्षों, पशुओं, पक्षियों आदि के रूप में अदृश्य होना ), २.५७( राजा आर्ष्टिषेण के सरस्वती तट पर आयोजित अश्वमेध यज्ञ में मिथु दानव द्वारा यज्ञ का विध्वंस, नृप व पुरोहित का अपहरण, पुरोहित - पुत्र द्वारा रक्षा का वर्णन ), २.९८( अभिष्टुत राजा के अश्वमेध में सविता देव का आगमन, त्वष्टा व यम द्वारा दैत्यों का हनन इत्यादि ), ब्रह्मवैवर्त्त ३.५.७( पुत्री द्वारा पुत्र का मुख देखने/जन्म देने से १०० अश्वमेध फलों की प्राप्ति का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड २.३.५.७( कश्यप के अश्वमेध में दिति के गर्भ/हिरण्यकशिपु द्वारा होता का आसन ग्रहण करना ), २.३.५२.३६+ ( सगर के अश्वमेध का वर्णन ), भविष्य ३.२.२३( विक्रमादित्य द्वारा अश्वमेध का अनुष्ठान, अश्व का दिशा भ्रमण, राजा का चन्द्रलोक गमन ), ४.२९.७( मार्गशीर्ष शुक्ल तृतीया व्रत से अश्वमेधफल प्राप्ति का उल्लेख), ४.२९.११( तृतीया व्रत के संदर्भ में मार्गशीर्ष व पौष कृष्ण तृतीया व्रतों से अश्वमेध फल की प्राप्ति ), ४.५७.११( चैत्र कृष्ण अष्टमी को स्थाणु शिव की अर्चना से अश्वमेध फल की प्राप्ति ), ४.९७.२८( चर्तुदशी तिथियों को उमा - महेश्वर की अर्चना से अश्वमेध फल की प्राप्ति ), ४.१२१.१४३( माघ मास की एकादशी, अष्टमी व चर्तुदशी को अजिन/वस्त्र, उपानह, कम्बल आदि दान से अश्वमेध फल की प्राप्ति ), ४.१५१.३४( गौ दान से अश्वमेध फल की प्राप्ति ), भागवत ४.१९( पृथु द्वारा अत्रि ऋषि के आचार्यत्व में अश्वमेध का अनुष्ठान, इन्द्र द्वारा पुन: - पुन: अश्व का हरण, पृथु - पुत्र विजिताश्व द्वारा अश्व की रक्षा, पृथु द्वारा अश्वमेध के संकल्प का त्याग ), ६.१३.१८( इन्द्र द्वारा अश्वमेध के अनुष्ठान से वृत्र हत्या जनित पाप से मुक्ति ), मत्स्य ५८.५४( तडाग में वसन्त ऋतु में जल की उपलब्धि कराने से अश्वमेध फल की प्राप्ति, अन्य ऋतुओं में अन्य यज्ञों के फलों की प्राप्ति ), ९३.१३८( कोटि होम से सहस्र अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), १०६.३०( प्रयाग में प्रतिष्ठान कूप पर वास से अश्वमेध के फल की प्राप्ति ), १०८.९( प्रयाग में प्रवेश मात्र से पद-पद पर अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), १८८.८२( चन्द्र व सूर्य ग्रहण के समय अमरकण्टक तीर्थ में गमन पर अश्वमेध से दस गुने फल की प्राप्ति का उल्लेख ),महाभारत अनुशासन १०६.४४( उपवास/षष्ठकालिक द्वारा अश्वमेध फल प्राप्ति का कथन ), आश्वमेधिक ९२दाक्षिणात्य पृष्ठ ६३४६, मार्कण्डेय १११.१४/१०८.१४( सुद्युम्न द्वारा अश्वमेध के अनुष्ठान से पुरुषत्व की प्राप्ति ), वराह ४.१३( राजा अश्वशिरा द्वारा अश्वमेध के अवभृथ स्नान के पश्चात् कपिल व जैगीषव्य मुनियों का प्राकट्य व विभिन्न रूप धारण करना ), वामन ७८.३२( धुन्धु दानव द्वारा देविका तट पर अश्वमेध का अनुष्ठान, यज्ञ में वामन का आगमन व धुन्धु के निग्रह का वर्णन ), वायु ६७.५३/२.६.५३( कश्यप के अश्वमेध में दिति के गर्भ/हिरण्यकशिपु द्वारा होता का आसन ग्रहण करना ), १०४.८४/२.४२.८४( अश्वमेध की कटि प्रदेश में स्थिति ), विष्णु ४.४.१६( सगर के यज्ञीय अश्व के हरण व सगर - पुत्रों के नष्ट होने आदि का वृत्तान्त ), विष्णुधर्मोत्तर १.२०७.१९( सन्नीति तीर्थ में सूर्य ग्रहण के समय श्राद्ध करने से अश्वमेध शत फल की प्राप्ति का उल्लेख ), २.९२.४९( भूमि दान से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.१८.१( आश्वमेधिक : ४९ तानों में से एक ), ३.२१८.१७( चातुर्मास काल में असिधारा व्रत से अश्वमेध फल की प्राप्ति ), ३.२६५.७( सत्य की सहस्र अश्वमेधों से श्रेष्ठता का उल्लेख ), ३.२९६.१५( ग्रीष्म ऋतु में तडाग में जल उपलब्ध कराने पर अश्वमेध फल की प्राप्ति, अन्य ऋतुओं में अन्य यज्ञों के फलों की प्राप्ति ), ३.३४१.१८३( कौशेय वस्त्रों आदि के दान से अश्वमेध फल की प्राप्ति का कथन ), ३.३४१.१९८( कर्णाभरण दान से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), स्कन्द २.२.१६.८+ ( राजा इन्द्रद्युम्न द्वारा जगन्नाथ क्षेत्र में चन्दन वृक्ष के निकट सहस्र वाजिमेधों का अनुष्ठान, अन्त में भगवान के दिव्य रूप का दर्शन ), ४.१.२१.३८( अश्वमेध की क्रतुओं में श्रेष्ठता का उल्लेख ), ५.१.१०.५( पौष शुक्ल अष्टमी को कुटुम्बेश्वर तीर्थ में उपवास से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.१.२२.६( कोटेश्वर शिव के दर्शन से १० अश्वमेधों के फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.१.२६.७०( मन्दाकिनी कुण्ड पर श्राद्ध से अश्वमेध फल की प्राप्ति ), ५.१.२७.९९( अवन्ती में अङ्कपाद तीर्थ में महाकाल आदि के दर्शन से अश्वमेध फल की प्राप्ति ), ५.१.४४.३९( उज्जयिनी के पद्मावती नाम के कारण की कथा श्रवण से अश्वमेध फल की प्राप्ति ), ५.१.५२.१( शिप्रा माहात्म्य श्रवण से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.१.५३.६०( पिशाचमोचन कथा श्रवण या पठन से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.१.५४.२८( आश्विन् अमावास्या को महालय श्राद्ध से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.१.६३.२३९( बलि के अश्वमेध यज्ञ के ऋत्विजों के नाम ), ५.२.२९.१५( परशुराम द्वारा ब्रह्महत्या से मुक्ति हेतु अश्वमेध के अनुष्ठान का कथन ), ५.२.४०.४१( कुण्डेश्वर लिङ्ग पूजा से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.२.५८.४३( प्रयागेश्वर लिङ्ग दर्शन से शत अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.२.५९.२ ( अश्वशिरा राजा द्वारा अश्वमेध के अवभृथ स्नान काल में कपिल व जैगीषव्य ऋषियों का दर्शन ), ५.२.६८.५१( पिशाचेश्वर शिव के दर्शन से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.२.७७.६५( पुष्पदन्तेश्वर के दर्शन से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.२.८१.९५( पिङ्गलेश्वर के दर्शन से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३.२.४९( रुद्र - प्रोक्त पुराण श्रवण से अश्वमेध फल की प्राप्ति ), ५.३.३५.२७( गर्जन तीर्थ में स्नान से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३.३८.६९( नर्मदेश्वर शिव की अर्चना से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३.९८.३५( प्रभास तीर्थ में जाने से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३.११५.९( अङ्गारक तीर्थ में गमन से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३.११८.४०( नर्मदा तट पर इन्द्र तीर्थ में स्नान आदि से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३.१३२.११( कृष्ण को प्रणाम से १० अश्वमेधों के फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३.१४०.६( नन्दा ह्रद में स्नान आदि से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३.१४६.१८( अस्माहक तीर्थ में अभिषेक आदि से अश्वमेध फल की प्राप्ति ), ५.३.१४६.५९( अमावास्या को ब्रह्मशिला पर श्राद्ध करने से अश्वमेध फल की प्राप्ति का कथन ), ५.३.१४६.१०५( अस्माहक तीर्थ में केशव अर्चना से अश्वमेध फल की प्राप्ति का कथन ), ५.३.१४६.११२( मन्वादि तिथियों आदि में पितरों को तिलोदक दान से अश्वमेध फल की प्राप्ति का कथन ), ५.३.१५२.२( भार्गलेश्वर तीर्थ में स्नान आदि से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३.१६८.३२( अङ्कूरेश्वर तीर्थ में स्नान आदि से अश्वमेध फल प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३.१७६.३३( देवखात में स्नान, पितृ तर्पण आदि से अश्वमेध फल की प्राप्ति ), ५.३.१७७.१८( भूतीश्वर तीर्थ में स्नान आदि से अश्वमेध फल की प्राप्ति ), ५.३.१७९.७( गौतमेश्वर तीर्थ में स्नान आदि से अश्वमेध फल की प्राप्ति ), ५.३.२०९.१( पुष्कली तीर्थ में स्नान से अश्वमेध फल की प्राप्ति ), ५.३.२०९.१४२( शिव रात्रि को जागरण से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३.२०९.१७८( कार्तिक शुक्ल चर्तुदशी को शिव लिङ्ग का चतुर्धा पूरण करने से अश्वमेध फल की प्राप्ति ), ५.३.२१०.६( पुङ्खल तीर्थ में स्नान आदि से अश्वमेध फल की प्राप्ति ), ५.३.२१४.४( कन्थेश्वर शिव के दर्शन से अश्वमेध फल की प्राप्ति ), ५.३.२२०.१७( रेवा - सागर सङ्गम में स्नान आदि से अश्वमेध फल की प्राप्ति ), ६.२६३.१३( योगी द्वारा मन पर जय की अश्वमेध संज्ञा ), ७.१.२३४( दशाश्वमेध तीर्थ का माहात्म्य : भरत द्वारा १० अश्वमेधों द्वारा यजन का स्थान ), हरिवंश ३.५.१२( जनमेजय के अश्वमेध में इन्द्र का मृत अश्व में प्रवेश ), ३.७१.४( वामन द्वारा बलि के दिव्य अश्वमेध के स्वरूप का कथन ), वा.रामायण १.८( राजा दशरथ द्वारा पुत्र प्राप्ति के लिए अश्वमेध का अनुष्ठान, वर्णन ), १.१४.४०( अश्वमेध के तीन सवनीय दिनों की संज्ञाओं का कथन : चतुष्टोम, उक्थ्य, अतिरात्र ), ७.९०( इल द्वारा अश्वमेध के अनुष्ठान से पुरुषत्व प्राप्ति का वर्णन ), ७.९१+ ( राम के अश्वमेध अनुष्ठान का वर्णन, लव - कुश द्वारा रामायण का गान, सीता द्वारा शुद्धि प्रमाण हेतु शपथ ग्रहण व रसातल में प्रवेश ), लक्ष्मीनारायण १.८४.४४( काशी में ब्रह्मा द्वारा दशाश्वमेध लिङ्ग की स्थापना व माहात्म्य ), २.१५७.३०( अङ्ग न्यास में अश्वमेध का मूर्धा में न्यास ), ३.२२.८८( अश्वमेध में अश्व के स्थान पर अग्नि में कूष्माण्ड फल की हवि देने का निर्देश ), ३.३१( पिता की अश्व योनि से मुक्ति के लिए धर्मधर द्वारा अश्वमेध का अनुष्ठान, अश्वमेध विधि का वर्णन ), कथासरित् ८.२.१८ ( , द्र. दशाश्वमेध, यज्ञ ashvamedha
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