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पुराण विषय अनुक्रमणिका

PURAANIC SUBJECT INDEX

(Anapatya to aahlaada only)

by

Radha Gupta, Suman Agarwal, Vipin Kumar

Home Page

Anapatya - Antahpraak (Anamitra, Anaranya, Anala, Anasuuyaa, Anirudhdha, Anil, Anu, Anumati, Anuvinda, Anuhraada etc.)

Anta - Aparnaa ((Antariksha, Antardhaana, Antarvedi, Andhaka, Andhakaara, Anna, Annapoornaa, Anvaahaaryapachana, Aparaajitaa, Aparnaa  etc.)

Apashakuna - Abhaya  (Apashakuna, Apaana, apaamaarga, Apuupa, Apsaraa, Abhaya etc.)

Abhayaa - Amaavaasyaa (Abhayaa, Abhichaara, Abhijit, Abhimanyu, Abhimaana, Abhisheka, Amara, Amarakantaka, Amaavasu, Amaavaasyaa etc.)

Amita - Ambu (Amitaabha, Amitrajit, Amrita, Amritaa, Ambara, Ambareesha,  Ambashtha, Ambaa, Ambaalikaa, Ambikaa, Ambu etc.)

Ambha - Arishta ( Word like Ayana, Ayas/stone, Ayodhaya, Ayomukhi, Arajaa, Arani, Aranya/wild/jungle, Arishta etc.)

Arishta - Arghya  (Arishtanemi, Arishtaa, Aruna, Arunaachala, Arundhati, Arka, Argha, Arghya etc.)           

Arghya - Alakshmi  (Archanaa, Arjuna, Artha, Ardhanaareeshwar, Arbuda, Aryamaa, Alakaa, Alakshmi etc.)

Alakshmi - Avara (Alakshmi, Alamkara, Alambushaa, Alarka, Avataara/incarnation, Avantikaa, Avabhritha etc.)  

Avasphurja - Ashoucha  (Avi, Avijnaata, Avidyaa, Avimukta, Aveekshita, Avyakta, Ashuunyashayana, Ashoka etc.)

Ashoucha - Ashva (Ashma/stone, Ashmaka, Ashru/tears, Ashva/horse etc.)

Ashvakraantaa - Ashvamedha (Ashwatara, Ashvattha/Pepal, Ashvatthaamaa, Ashvapati, Ashvamedha etc.)

Ashvamedha - Ashvinau  (Ashvamedha, Ashvashiraa, Ashvinau etc.)

Ashvinau - Asi  (Ashvinau, Ashtaka, Ashtakaa, Ashtami, Ashtaavakra, Asi/sword etc.)

Asi - Astra (Asi/sword, Asikni, Asita, Asura/demon, Asuuyaa, Asta/sunset, Astra/weapon etc.)

Astra - Ahoraatra  (Astra/weapon, Aha/day, Ahamkara, Ahalyaa, Ahimsaa/nonviolence, Ahirbudhnya etc.)  

Aa - Aajyapa  (Aakaasha/sky, Aakashaganga/milky way, Aakaashashayana, Aakuuti, Aagneedhra, Aangirasa, Aachaara, Aachamana, Aajya etc.) 

Aataruusha - Aaditya (Aadi, Aatma/Aatmaa/soul, Aatreya,  Aaditya/sun etc.) 

Aaditya - Aapuurana (Aaditya, Aanakadundubhi, Aananda, Aanarta, Aantra/intestine, Aapastamba etc.)

Aapah - Aayurveda (Aapah/water, Aama, Aamalaka, Aayu, Aayurveda, Aayudha/weapon etc.)

Aayurveda - Aavarta  (Aayurveda, Aaranyaka, Aarama, Aaruni, Aarogya, Aardra, Aaryaa, Aarsha, Aarshtishena, Aavarana/cover, Aavarta etc.)

Aavasathya - Aahavaneeya (Aavasathya, Aavaha, Aashaa, Aashcharya/wonder, Aashvin, Aashadha, Aasana, Aasteeka, Aahavaneeya etc.)

Aahavaneeya - Aahlaada (Aahavaneeya, Aahuka, Aahuti, Aahlaada etc. )

 

 

अश्म विष्णु ४.२०.२१( अश्मसारी : शन्तनु - मन्त्री, शन्तनु - अग्रज देवापि को वेद मार्ग से विरुद्ध करने का उद्योग ), विष्णुधर्मोत्तर १.६८( परशुराम का वरुण के अश्म नगर में प्रवेश, नगर की शोभा का वर्णन, दैत्यों का नाश ), स्कन्द ५.३.१३६.१७( अहल्या द्वारा अश्ममय शरीर त्याग की कथा ), महाभारत वन ३१३.६२( अश्म के हृदय रहित होने का उल्लेख : यक्ष - युधिष्ठिर संवाद ), वा.रामायण ७.२३.१७( अश्म नगर में कालकेयों का वास, रावण द्वारा अश्म नगर में विद्युज्जिह्व का वध )ashma

 

अश्मक गरुड १.५५.१३( दक्षिण का एक देश ), ब्रह्माण्ड १.२.१६.५८( दक्षिण का एक देश ),भागवत ९.९.३९( राजा सौदास की रानी मदयन्ती के गर्भ से उत्पन्न क्षेत्रज पुत्र, मूलक - पिता ), मत्स्य २७२.१६( कलियुग में २५ अश्मक राजाओं के राज्य का कथन ), विष्णु ४.४.७१( राजा सौदास की रानी मदयन्ती के गर्भ से उत्पन्न क्षेत्रज पुत्र, मूलक - पिता ), महाभारत उद्योग १५.३४(अश्मा से लौह की उत्पत्ति का उल्लेख), ashmaka

 

अश्रु गर्ग ५.१६.४( गोपियों के विरह अश्रुओं से कह्लार पुष्पों से युक्त सरोवर प्रकट होने का उल्लेख ), पद्म २.७७.६६( रति के काम से वियोग होने पर उत्पन्न अश्रुओं से शोक, जरा, कामज्वर आदि की सृष्टि व काम से संयोग के समाचार पर उत्पन्न अश्रुओं से प्रीति, शान्ति, कमल आदि की उत्पत्ति ), २.१०१.३८( स्त्री के अश्रुओं से कमलों की उत्पत्ति की कथा ), २.१२१.१०( कामोदा के अश्रुओं से कमलों की उत्पत्ति व विहुण्ड दैत्य के नष्ट होने की कथा ), ब्रह्मवैवर्त्त २.३०.२५( नरक में अश्रुकुण्ड प्रापक दुष्कर्मों का कथन ), विष्णुधर्मोत्तर १.१०६.९९( ब्रह्मा की कन्या मृत्यु के अश्रुबिन्दुओं से व्याधियों की उत्पत्ति का उल्लेख ), शिव ५.५०.१८( शताक्षी देवी के करुणापूर्ण अश्रुओं से लोक में ओषधि आदि उत्पन्न होने का कथन ), ७.१.१२.२४( ब्रह्मा के दुःख से उत्पन्न अश्रु बिन्दुओं से भूत - प्रेतों की उत्पत्ति का उल्लेख ), स्कन्द २.४.१२.१३( ब्रह्मा के प्रेमाश्रुओं से धात्री वृक्ष की उत्पत्ति का उल्लेख ), ४.२.९३.८( ब्रह्मा का वैभव देखकर रुद्र का आनन्द अश्रुओं से पूर्ण होना ), ५.२.४८.३( ब्रह्मा के अश्रुकणों से हारव दानव  की उत्पत्ति का उल्लेख ), ६.२०६(इन्द्र के प्रेत श्राद्ध में न आने पर इन्द्र द्वारा विश्वेदेवों  को शाप, विश्वेदेवों  के अश्रुओं से कूष्माण्ड की उत्पत्ति, ब्रह्मा द्वारा विश्वेदेवों  को उत्शाप), लक्ष्मीनारायण १.३०१.६३( अग्नि के अश्रुओं से रजत की उत्पत्ति का उल्लेख ), १.३७०.६४( नरक में अश्रुकुण्ड प्रापक कर्मों का उल्लेख ), १.५३८.२३(शिव द्वारा त्रिपुर विनाशार्थ स्वनेत्र के अश्रु से भौम/मङ्गल को उत्पन्न करना )ashru

Remarks on Ashru

अश्रुता कथासरित् १४.१.२४( अष्टावक्र - भ्राता की कन्या, अङ्गिरा की पत्नी बनना, अङ्गिरा की सावित्री पर आसक्ति जानकर आत्महत्या की चेष्टा )

 

अश्रुबिन्दुमती पद्म २.७७.७८( रति के आनन्द के अश्रुओं से अश्रुबिन्दुमती की उत्पत्ति, ययाति की अश्रुबिन्दुमती पर आसक्ति, अश्रुबिन्दुमती को प्राप्त करने के लिए ययाति द्वारा जरा त्याग का उद्योग ), २.८१.३१( अश्रुबिन्दुमती को भोगने के पश्चात् ययाति में वैराग्य की उत्पत्ति, अश्रुबिन्दुमती को त्याग कर पूरु पुत्र से जरा का ग्रहण )ashrubindumati

 

अश्व अग्नि २३२.२५( अश्व द्वारा शुभाशुभ शकुन ज्ञान ), २६९.४( अश्व प्रार्थना मन्त्र ), २८८( अश्व वाहन सार : वाहन - वाहक लक्षण आदि, अश्व – मन्त्र, अश्व के अंगों में देवों का न्यास ), २८९( अश्वों के शुभ-अशुभ लक्षण, अश्व चिकित्सा), २९०( अश्व शान्ति कर्म ), कूर्म १.७.५५( ब्रह्मा के पदों से अश्व की सृष्टि ), गरुड १.८७.२५( महाकाल दानव वध हेतु विष्णु का अश्व रूप में अवतार ), ३.२२.७९(अश्व में वामन की स्थिति का उल्लेख), गर्ग ५.२.१८( इन्द्र - अनुचर कुमुद का इन्द्र के शाप से केशी अश्व बनना ), ७.३.१७( प्रद्युम्न सेना के अश्वों की विविधता का वर्णन ), १०.८( अश्वमेध यज्ञ हेतु उपयुक्त अश्व का अवलोकन ), १०.१३.४३( कृष्ण की अश्वशाला में अश्वों के प्रकार ), १०.१६.३२( पंख वाले अश्वों का उल्लेख ), १०.५६.४१( उग्रसेन के अश्वमेधीय यज्ञ पशु का कर्पूर द्रव्य में रूपान्तरण ), देवीभागवत २.१२.११( सूर्य रथ के अश्व के वर्ण के सम्बन्ध में कद्रू- विनता के विवाद की कथा ), ६.१७.५१+ ( लक्ष्मी का रेवन्त के वाहन उच्चैःश्रवा को देखकर मोहित होना, विष्णु शाप से वडवा बनना, वडवा का हय रूप धारी विष्णु से समागम, हैहय पुत्र की उत्पत्ति ), नारद १.५०.६२( अश्व द्वारा धैवत स्वर के वादन का उल्लेख ), १.९०.७०( रक्तोत्पल द्वारा देवी पूजा से अश्वसिद्धि का उल्लेख ), पद्म १.३.१०६( ब्रह्मा के पद से अश्व आदि की सृष्टि का कथन ), १.२०.१३२(  अश्व व्रत का संक्षिप्त माहात्म्य एवं विधि ), १.४०.९७( अश्वग : मरुत नाम ), ५.९( अश्वमेध योग्य अश्व, अगस्त्य - राम संवाद ), ५.४७.८+( हेमकूट पर्वत पर राक्षस द्वारा राम के यज्ञीय अश्व का गात्र स्तम्भन, मुक्ति ), ५.६७.४९( राम के अश्वमेध में अश्व द्वारा दिव्य रूप प्राप्ति, पूर्व जन्म में द्विज, दुर्वासा के शाप से अश्व ), ६.१८६( राजा बृहद्रथ के यज्ञीय अश्व की इन्द्र द्वारा चोरी, गीता के १२वें अध्याय के प्रभाव से पुन: प्राप्ति ), ६.१८९.८( पूर्व जन्म में सरभ - भेरुण्ड नामक सेनापति, गीता के १५वें अध्याय के श्रवण से मुक्ति ), ब्रह्म १.११.४( रौद्राश्व : सुबाहु - पुत्र, दशार्णेयु - पिता, पूरु वंश ), १.११.९४( बाह्याश्व : पुरुजाति - पुत्र, कृमिलाश्व आदि के पिता, अजमीढ वंश ), ब्रह्माण्ड १.२.२३.५६( चन्द्रमा के रथ में १० अश्वों के नाम ), १.२.३६.३५( तृतीय मन्वन्तर में सत्य नामक देवगण में अश्व व सदश्व देव नाम ), २.३.७.१३६( खशा का एक पुत्र ), २.३.११.७६( अश्व प्रजापति के बालों से काश की उत्पत्ति ), ३.४.१६.१४( ललिता देवी की सहचरी अश्वारूढा के अश्वों की विशेषताएं ), भविष्य २.१.१७.१४( अश्वाग्नि का मन्थर नाम ), ३.३.१०.४०( देशराज द्वारा हय प्राप्ति के लिए सूर्य की आराधना, पपीहक हय की प्राप्ति, अश्वों के अन्य अंशावतारों का वर्णन ), ३.३.१६.४( राजा गजसेन द्वारा पावक की आराधना से पावकीय हय की प्राप्ति, युद्ध में हय द्वारा शत्रु सेना को जलाना ), ३.३.१६.५४( इन्दुल का वडवामृत हय : हय से उत्पन्न मेघों द्वारा अग्नि के हय से उत्पन्न पावक का शमन, वीरों का पुन: सञ्जीवन ), ३.३.२१.२०( मकरन्द द्वारा धर्म से शिलाश्व की प्राप्ति ), ३.३.२५.५१( बलखानि द्वारा कपोत हय पर आरूढ होकर १२ गर्त पार करने का प्रयास ), ३.३.३१.१०७( आह्लाद, बलखानि आदि वीरों के अश्वों के नाम व दिव्य अंशों का कथन ), ३.३.३२.१९५( तारक द्वारा मनोरथ नामक हय का वध ), ४.१३८.४८( अश्व मन्त्र ), ४.१४१.६२( अश्वरूपधारी कपिल से शांति की प्रार्थना), ४.१८०.३६( अश्व रथ दान की विधि, वेद रूप अश्व ), ४.१८६( हिरण्य अश्व दान की विधि ), भागवत ७.१०.६६( धर्म रथ में ऋद्धि रूपी अश्वों का उल्लेख ), मत्स्य २२.७१( अश्व तीर्थ में श्राद्ध व दान का संक्षिप्त माहात्म्य ), ४९.४९( अश्वजित् : जयद्रथ - पुत्र, सेनजित् - पिता, अजमीढ वंशज ), ९३.६( विष्णु रूप अश्व से शान्ति की कामना ), १०१.७१( अश्व व्रत ), १७१.५३( अश्वमित्र : मरुत नाम ), २८०( हिरण्याश्व दान विधि ), मार्कण्डेय २०.४८/१८.४८( समाधिस्थ गालव के समक्ष आकाश से अश्व का प्रकट होना, ऋतध्वज द्वारा अश्वारूढ होकर शूकर रूपी दानव का अनुगमन ), लिङ्ग २.३९( हिरण्य अश्व दान विधि ), वराह १५१.२२( लोहार्गल क्षेत्र में आकाश से पृथ्वी पर आते हुए अश्व की कल्पना ), वामन ९.२६( अन्धकासुर व उसके सेनानियों के रथों के अश्वों का कथन ), ५९.३( राजा ऋतध्वज द्वारा विश्वावसु गन्धर्व से प्राप्त अश्व पर आरूढ होकर पातालकेतु राक्षस के वध की कथा ), वायु ५२.४५( सूर्य व अन्य ग्रहों के रथों में अश्वों के नाम, वर्ण ), ६१.२२( याज्ञवल्क्य - शिष्यों का अश्व बनकर सूर्य से यजुर्वेद की शिक्षा प्राप्त करना ), ९६.११४/२.३४.११४( चित्रक - पुत्र, अनमित्र - वंश ), विष्णु ४.७.१४( ऋचीक द्वारा सत्यवती से विवाह हेतु गाधि को शुल्क रूप में एक सहस्र श्याम कर्ण अश्व देना ), विष्णुधर्मोत्तर २.११( निकृष्ट व उत्कृष्ट अश्वों के शरीर लक्षणों का वर्णन ), २.४५( अश्व प्रशंसा, देवों के वाहक अश्व सपक्ष, मनुष्यों के अपक्ष ), २.४६( अश्व चिकित्सा का वर्णन ), २.४७( अश्व शान्ति कर्म का कथन ), २.१६०.४( अश्व मन्त्र का कथन ), ३.३०१.३०( अश्व आदि प्रतिग्रह की विधि ), स्कन्द १.३.२.२२( शोणाचल/अरुणाचल में गिरने से अश्व को खेचरत्व प्राप्ति ), ३.२.६.९८(हय दान से दिव्य देह होने का उल्लेख), ३.२.१५( वम्रियों के कारण शिर छेदन होने पर विष्णु का अश्व शिर से युक्त होकर हयग्रीव बनना ), ५.१.३६.६७( नरदीप तीर्थ में दक्षिण द्वार पर अश्व दान का उल्लेख, पूर्वद्वार पर गौ, पश्चिम पर गज, उत्तरद्वार पर रथ ), ५.१.४४.२५( समुद्र मन्थन से उत्पन्न सप्तास्य वाले अश्व के सूर्य को प्राप्त होने का उल्लेख ), ५.३.५०.२०( शूलभेद तीर्थ में अश्व आदि दान फल का उल्लेख : विमान में आरूढ होकर स्वर्ग गमन ), ५.३.५६.११९( अश्व दान से अर्क सायुज्य प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३.९८.१८( प्रभासेश तीर्थ में अश्व स्पर्श से इन्द्रत्व प्राप्ति आदि का कथन ), ६.१६५.३२( ऋचीक द्वारा गाधि - कन्या प्राप्ति के लिए मन्त्र जप द्वारा श्याम कर्ण अश्वों की प्राप्ति ), ७.१.१६६.३१( सावित्री के भावी पति सत्यवाक् की अश्वप्रियता का उल्लेख ), ७.१.२०७.४५(अश्व के चक्षु होने का उल्लेख), हरिवंश ३.५.१३( जनमेजय की पत्नी वपुष्टमा से समागम के लिए इन्द्र द्वारा अश्वमेधीय यज्ञ के मृत अश्व में प्रवेश करके वपुष्टमा को प्राप्त करना ), ३.७१.६( अश्वमेध के वाजी के वैश्वानर होने का उल्लेख ), योगवासिष्ठ ३.१०४.३३+ (राजा लवण के समक्ष न्द्रजालिक अश्व का प्रकट होना, राजा द्वारा अश्व पर आरूढ होकर पृथ्वी का भ्रमण करना व आपत्ति ग्रस्त होना, अश्व का अदृश्य होना ), महाभारत वन ७७.१७( राजा नल द्वारा राजा ऋतुपर्ण को अश्वविद्या सिखाना तथा अक्षविद्या सीखना ), १९२.४२( राजा शल द्वारा मुनि वामदेव से प्राप्त वाम्य अश्वों को न लौटाने पर राक्षस द्वारा शल का वध ), विराट ३.४( नकुल द्वारा विराट को ग्रन्थिक नामक अश्व विशेषज्ञ के रूप में अपना परिचय देना ), १२.१( नकुल का विराट के अश्वों के रक्षक के रूप में नियुक्त होना ), उद्योग ५६.१३( गन्धर्वराज चित्ररथ द्वारा प्रदत्त अर्जुन के रथ के १०० अश्वों की विशेषता ), ५६.१४ ( भीम, सहदेव, नकुल आदि के रथों के अश्वों की विशेषताएं ), ९४.१२दाक्षिणात्य ( श्रीकृष्ण के रथ के शैब्य, सुग्रीव आदि ४ अश्वों के वर्ण ), ११४( गालव द्वारा गुरुदक्षिणा हेतु ययाति से श्यामकर्ण अश्वों की याचना ), ११६( राजा हर्यश्व द्वारा २०० श्यामकर्ण अश्व देकर ययाति - कन्या से वसुमना नामक पुत्र उत्पन्न करना ), ११८( राजा उशीनर द्वारा २०० श्यामकर्ण अश्व देकर माधवी से शिबि नामक पुत्र उत्पन्न करना ), १७९.३( परशुराम के पृथ्वी रूपी रथ में वेद रूपी अश्व ), द्रोण २३( पाण्डव सेना के महारथियों के रथ, अश्वों आदि का वर्णन ), ९७.२२( धृष्टद्युम्न व द्रोणाचार्य के अश्वों के वर्णों का उल्लेख ), १०४.७( कौरवों के कौलूतक हयों व पाण्डवों के आजानेय हयों का उल्लेख ), ११५.२०( सात्यकि के कुन्द इन्दु रजतप्रभ अश्वों का उल्लेख ), १७५.१३( घटोत्कच के अश्वों की विशेषताएं ), १७६.१६( राक्षसराज अलायुध के अश्वों की विशेषता : हस्तिकाय, खरस्वन आदि ), १९६.३०( अश्वत्थामा द्वारा जन्म समय पर उच्चैःश्रवा अश्व के समान शब्द करने का उल्लेख ), कर्ण ३१.६२( कृष्ण द्वारा अश्वहृदय जानने तथा शल्य को अश्वज्ञान होने का कथन ), ३२.६२( शल्य के अश्व विद्या में श्रीकृष्ण से २ गुना श्रेष्ठ होने का उल्लेख ), ३४.१०५( रुद्र द्वारा अश्वों के स्तन काटने का उल्लेख ), ३८.८( कर्ण द्वारा अर्जुन का पता बताने वाले को रथ सहित अश्वों आदि को पुरस्कार रूप में देने की घोषणा ), ४६.३८( अग्नि द्वारा अर्जुन के रथ के सप्ति/अश्व रूप में कार्य करने का उल्लेख ), ६३.११( कर्ण द्वारा युधिष्ठिर के कालवाल वाले अश्वों को मार डालने का उल्लेख ), शान्ति १२४.१०( दुर्योधन के आजानेय अश्वों का उल्लेख ), १४२.२६(अज, अश्व व क्षत्र में सादृश्य होने का उल्लेख), ३१८.३८ (पाठभेद)( अश्व और अश्वा के मिथुन का उल्लेख ), अनुशासन ४.१६( ऋचीक ऋषि द्वारा वरुण से श्यामकर्ण अश्व उत्पन्न करने का वरदान प्राप्त करना ), ८४.४७( अग्नि के अज, वरुण के मेष व सूर्य के अश्व होने का उल्लेख ), आश्वमेधिक ५८.४२( नागलोक में उत्तङ्क मुनि के समक्ष अश्व रूप धारी अग्नि का प्रकट होना, अश्व के अपान में धमन करने से उत्पन्न धूम्र से नागों का व्याकुल होना ), ७२+ ( अर्जुन द्वारा अश्वमेधीय अश्व की रक्षा के लिए अश्व के अनुगमन का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.६३.१८( सूर्य का अश्व रूप धारण करके वडवा रूपी संज्ञा से समागम, अश्विनौ व रेवन्त की उत्पत्ति ), १.१७०.४७( कृष्ण के वाम कर्ण से श्वेत तुरगों का आविर्भाव ), १.४६४.१२( उच्चैःश्रवा के रंग के सम्बन्ध में कद्रू व विनता के बीच शर्त ), १.५०६.१७( ऋचीक द्वारा ऋग्वेद सूक्त के जप से वरुण से श्याम कर्ण अश्वों की प्राप्ति ), १.५६४.९३( राजा धुन्धुमार के अश्व द्वारा नर्मदा में स्नान से दिव्य रूप धारण करना, अश्व के पूर्व जन्म में गालव होने का वर्णन ), १.५३९.७३( षडश्व के अशुभत्व का उल्लेख ), २.२३६.४०( बर्बुरि नृप द्वारा अश्व रूप धारी आश्वलायन मुनि का बन्धन, शाप से बर्बुरी वृक्ष बनना, पुत्र द्वारा अश्वमेध यज्ञ के अनुष्ठान से अश्वत्व से मुक्ति ), ३.१६.३७( श्री वारिधि नारायण हेतु मिष्टोदक द्वारा प्रदत्त जल तुरंग के स्वरूप का कथन ), ३.१२८.३६( हिरण्य अश्व दान विधि ), कथासरित् ३.४.८८( आदित्यसेन के श्रीवृक्षक नामक अश्व की महिमा ), ४.२.१८२ ( सूर्य के अश्वों के रंग के सम्बन्ध में कद्रू व विनता का विवाद ), ५.३.८५ ( शक्तिदेव द्वारा हयारूढ होने का प्रयास करने पर अश्व द्वारा वापी में क्षेपण ), १०.३.६५ ( सोमप्रभ को उच्चैःश्रवा - पुत्र आशुश्रवा नामक अश्व की प्राप्ति ), ११.१.६( हस्तिनी व अश्वों की जव परीक्षा में हस्तिनी की विजय की कथा ), १८.२.२७७ ( पवन जव, समुद्र कल्लोल, शरवेग, गरुड वेग आदि अश्वों की राजाओं द्वारा प्राप्ति ), द्र. आश्वलायन, उग्राश्व, उच्चैःश्रवा, कपिलाश्व, कुवलाश्व, कुशाश्व, कृशाश्व, दृढाश्व, धूम्राश्व, पृषदश्व, बृर्हणाश्व, बलाश्व, बहुलाश्व, बृहदश्व, भद्राश्व, युवनाश्व, यौवनाश्व, रक्षाश्व, वडवा, वध्र्यश्व, वाजी, विजिताश्व, विनीताश्व, विन्ध्याश्व, व्युषिताश्व, शबलाश्व, श्यावाश्व, श्वेताश्व, सप्ताश्व, हय, हरिताश्व, हर्यश्व ashva/ ashwa

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